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रक्तिम तिवारी/अजमेर.
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में कई जीव-जंतुओं और नायाब पौधों का खजाना मौजूद है। विवि पर्याप्त प्रयास करे तो कैंपस को देशभर के पर्यावरण विज्ञान, जूलॉजी-बॉटनी के शोधार्थियों के लिए उपयोगी रिसर्च सेंटर बन सकता है। साथ ही वैश्विक पहचान बना सकता है।
नायाब बॉटनीकल गार्डन
कुलपति निवास के पीछे बॉटनीकल गार्डन विकसित हो रहा है। यहां खीर-कांचन, तुलसी, स्वर्णक्षीरी, अश्वगंधा, भृंगराज, लाजवंती, मुश्कदाना सहदेवी, जंगली प्याज, कालमेघ, वेत्तिवर चित्रक, अपराजिता, मेहंदी, सतावरी, कलिहारी जीवंती, उलट कंबल, नागकेसर, महुआ, आमला, सिरिस, कच, करंज जैसे नायाब औषधीय महत्व के पौधे लगाए गए हैं।
कई प्रजातियों की तितलियां
कायड़ रोड विश्वविद्यालय परिसर में कई प्रजातियों की नायाब तितलियां मौजूद हैं। इनमें कॉमन ईवनिंग, टेल्ड जे बटरफ्लाई, लाइन बटरफ्लाई, ब्ल्यू टाइगर, ग्लेसी टाइगर, पर्पल-ग्रे, कॉमन ब्लैक, ऑरेंज-ब्लैक बटरफ्लाई शामिल हैं। तितलियों की करीब 70 से ज्यादा प्रजातियां यहां देखी जा सकती हैं।
कई प्रजाति के मेंढक-सर्प मौजूद
विश्वविद्यालय परिसर घूघरा-कायड़ की पहाडिय़ों के निकट है। यहां पथरीली जमीन-खेत हैं। इसके चलते कई प्रजाति के सर्प मौजूद हैं। इनमें कोबरा, सैंड वाइपर, वाइपर, क्रेट, स्मूट रेसर जैसे सर्प मौजूद हैं। इसके अलावा परिसर में अंगूठे के बराबर छोटे और बढ़े मेंढक, मदार लिजार्ड और अन्य प्रजातियों के जीव-जंतु भी देखे जा सकते हैं।
पौधों की दुर्लभ प्रजातियां
परिसर में जंगली पौधों की कई दुर्लभ प्रजातियां मौजूद हैं। यह अजमेर के अन्य इलाकों में नहीं मिलती हैं। इनमें इंडिगोफेर ऑब्लोंगो, फोलिया, एस्ट्रागेलिना, सोरालिया प्लिक्टिा,विलायती झोझारू शामिल है। दिखती हैं कई चिडिय़ाविवि परिसर में नीम, अमलताश, बरगद, पीपल, रुद्राक्ष और अन्य पेड़ों की बहुतायत है। यहां विभिन्न प्रजातियों की चिडिय़ा रहती हैं। कॉमन स्पेरो, कॉमन कूट, कोयल, कुकू, पपीहा, कौए, तोते और अन्य शामिल हैं।
बन सकता है रिसर्च सेंटर: एफएक्यू
-परिसर है जैव विविधता का उपयोगी केंद्र
-रिसर्च सेंटर में आएंगे देश-विदेश के विद्यार्थी
-दुर्लभ बॉटनीकल प्लांट का पेटेंट संभव
-दुर्लभ जीव-जंतुओं का संरक्षण और पेटेंट
-जैव संरक्षण में कई राज्यों की कर सकता है मदद
जैव विविधता के लिहाज से विवि परिसर बहुत उपयोगी है। यह देश-दुनिया का अच्छा रिसर्च सेंटर बन सकता है। यहां रहकर शोधार्थी-विद्यार्थी रिसर्च पेपर तैयार कर सकते हैं। विवि की पहचान बढऩ में मदद मिलेगी।
प्रो. सुभाष चंद्र, जूलॉजी विभागाध्यक्ष मदस विवि
Published on:
11 Dec 2021 09:27 am
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