
jain saint speech
अजमेर. राग, द्वेष और मोह के कारण मानव पाप करता है। उसके फल भी स्वयं ही भोगने पड़ते हैं। यह बात आचार्य मुनि वसुनन्दी ने धर्मसभा के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि मानव अपनी जीवन रूपी चादर में जाने-अनजाने कितने ही दाग लगा लेता है। इन्हं प्रक्षालित करने के लिए प्रभु भक्ति और दान, रूपी जल आवश्यक है। लोक-परलोक, आत्मा का भय होने पर पाप कर्मों में प्रवृति नहीं हो सकती है। जिनमें यह भय नहीं होते उनके कदम पाप की ओर बढ़ जाते हैं। राग, द्वेष, मोह भय से होने वाले पाप का मनुष्य को स्वयं फल भोगना पड़ता है। कोई दूसरा व्यक्ति इन पाप का भार हल्का नहीं कर सकता। स्वयं के प्रति प्रायश्चित, पश्चाताप से हीपाप के भार को कम करना संभव है।
संसार में प्रत्येक प्राणी को कार्य के दौरान कुछ मालूम नहं होता। लेकिन प्रत्येक कार्य का फल उसे मिलता है। तभी उसे पाने या खोने का एहसास होता है। इससे पहले मंगलाचरण सुनीता ढिलवारी ने किया।
जिनबिम्ब कमलासन पर विराजित
विनीत कुमार जैन ने बताया कि जिनशासन तीर्थक्षेत्र का निर्माण कार्य जारी है। नव निर्मित तीर्थंकर भगवान के जिनबिम्ब को कमलासन पर विराजित किया गया। इसके तहत प्रात: 6:30 बजे श्रीजी अभिषेक एवं शांतिधारा, सुबह 7 बजे विधान पूजन, 9 बजे मंगल प्रवचन हुए। 26 अक्टूबर को शोभा यात्रा का आयोजन किया जाएगा।
Published on:
25 Oct 2018 09:53 am
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