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Good news : ये है सेल्फ फाइनेंसिंग कोर्स का असली मतलब, खूब कमाओ और भरो जेब

इन संस्थाओं को तकनीकी गुणवत्ता के लिहाज से अव्वल माना जाता है।

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sfs course in college

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रक्तिम तिवारी/अजमेर।

इंजीनियरिंग कॉलेज और खुद राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के लिए सेल्फ फाइनेंसिंग कोर्स कमाई साधन बनते जा रहे हैं। देश के कई आईआईटी और एनआईआटी ऐसे कोर्स से दूर हैं। इसके बावजूद प्रदेश के तकनीकी संस्थाएं बेवजह इन्हें संचालित किए हुए है।

सेल्फ फाइनेंसिंग योजना के तहत तकनीकी संस्थान सरकार से सहायता लिए बगैर कोर्स चलाते हैं। इनमें सरकारी सीट के मुकाबले दोगुना अथवा तीन गुना फीस तय होती है। संबंधित विश्वविद्यालय/कॉलेज पर ही अध्ययन-अध्यापन, वेतन-भत्ते चुकाने की जिम्मेदारी होती है।

अजमेर का राजकीय महिला इंजीनियरिंग कॉलेज तो पूरा ही एसएफएस सीट पर संचालित हैं। इसके अलावा बॉयज इंजीनियरिंग, बीकानेर , जोधपुर के एमबीएम, कोटा इंजीनियरिंग सहित राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में कई ब्रांच-कोर्स सेल्फ फाइनेंसिंग योजनान्तर्गत संचालित है।

नहीं होती थी पहले एसएफएस सीट

1997-98 तक प्रदेश के किसी भी इंजीनियरिंग कॉलेज में सेल्फ फाइनेंसिंग कोर्स अथवा सीट नहीं थी। सभी संस्थाओं में सरकारी सीट पर ही दाखिले होते थे। राजस्थान तकनीकी शिक्षा विश्वविद्यालय ने भी शुरूआती दौर में एसएफएस कोर्स नहीं चलाए। लेकिन पिछले 15 साल में तो संस्थाओं में सेल्फ फाइनेसिंग योजना के लिए होड़ मच गई है।

आईआईटी-एनआईटी की रुचि कम
देश में कानपुर, जोधपुर, रुड़की, मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई सहित विभिन्न शहरों मेंआईआईटी संस्थान हैं। इसी तरह जयपुर , शिलांग, बेंगलूरू सहित अन्य नेशनल टेक्निकल इंस्टीट्यूट हैं। इन संस्थाओं को तकनीकी गुणवत्ता के लिहाज से अव्वल माना जाता है। इन संस्थाओं में भी मुख्य अथवा ब्रांच में ऐसे कोर्स नहीं चलते हैं। इनमें केवल लघु स्तरीय पाठ्यक्रम ही इस योजना में चलाए जाते हैं।

विद्यार्थियों को लगती है चपत

सरकार ने 'कमाओ और खाओ योजना के तहत सेल्फ फाइनेंसिंग योजना को बढ़ावा दिया। अजमेर के बॉयज इंजीनियरिंग कॉलेज में वर्ष 198-99 में कुछ ब्रांचों की 20-25 सीट सेल्फ फाइनेंसिंग योजना में रखी गई थीं। बाद में सभी कॉलेज में सिलसिला चल पड़ा। यह संस्थाओं के खुद के बनाए नियमों पर संचालित हैं। इनकी फीस सरकार द्वारा निर्धारित फीस से ज्यादा होतीह ै। विद्यार्थियों को बी.टेक की डिग्री मिलने तक लाखों रुपए की चपत लग जाती है।

एआईसीटीईऔर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नियमों में सेल्फ फाइनेंसिंग कोर्स या योजना का स्पष्ट जिक्र नहीं है। सरकार को विद्यार्थियों के हित में इस योजना को खत्म करनी चाहिए।

प्रो. श्रीगोपाल बाहेती, पूर्व प्राचार्य बॉयज और महिला इंजीनियरिंग कॉलेज

हमारे यहां एमएनआईटी में कोर कोर्सेज (मुख्य कोर्स) में कोई भी सीट सेल्फ फाइनेंसिंग योजना में नहीं हैं। कुछ छोटे स्तर के कोर्स में जरूर ऐसा प्रयोग हुआ है। सरकार को इस योजना पर विचार करना चाहिए।

डॉ. अजयसिंह जेठू, पूर्व प्राचार्य एवं एमएनआईटी जयपुर