
Ajmer News : सौ तक की गिनती नहीं आती फिर भी बन गए मास्टर, हजारों विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़
अजमेर. माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान (RBSE) की उत्तरपुस्तिकाओं को जांचने वाले परीक्षकों (Examiner)
की लापरवाही से हजारों विद्यार्थियों (students) का भविष्य दांव पर लगा है। इस साल भी लापरवाही के हजारों मामले सामने आ चुके हैं। कॉपियां जांचने में बरती जा रही इस लापरवाही की वजह से अनेक विद्यार्थी अपना मनपसंद विषय लेने से चूक गए तो हजारों विद्यार्थी ऐसे भी हंै जो उच्च शिक्षा के लिए बड़े शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश लेने से वंचित रह गए। हालांकि संवीक्षा के बाद उनके अंक तो बढ़ गए लेकिन तब तक स्थितियां हाथ से निकल चुकी थीं।
हाल ही में सीकर जिले में एक ऐसा ही मामला सामने आया है।शिक्षा बोर्ड अपनी परीक्षाओं की विश्वसनीयता का दावा करने के बावजूद उत्तरपुस्तिकाओं का मूल्यांकन कराने के मामले में लाचार नजर आ रहा है। परीक्षकों के खिलाफ पुख्ता कार्रवाई नहीं होने के कारण विद्यार्थियों की साल भर की मेहनत का उचित मूल्यांकन नहीं हो पाता। महज अंकों के जोड़ में ही प्रति वर्ष हजारो विद्यार्थियों की उत्तरपुस्तिकाओं में एक से 45 अंक तक की गलती रह जाती है।
तीन से चार माह देरी से आता है परिणाम
शिक्षा बोर्ड की बारहवीं और दसवीं परीक्षा के परिणाम के बाद प्रति वर्ष लगभग डेढ़ लाख विद्यार्थी अपनी उत्तरपुस्तिकाओं की संवीक्षा कराते हैं। इसके तहत उनकी उत्तरपुस्तिकाओं में परीक्षकों द्वारा दिए अंको की री-टोटलिंग की जाती है। संवीक्षा की बदौलत प्रति वर्ष 15 से 20 हजार विद्यार्थियों के अंक बढ़ जाते हैं। लेकिन संवीक्षा कार्य की गति इतनी धीमी होती है कि विद्यार्थियों को संवीक्षा परिणाम तीन से चार माह बाद मिल पाता है। तब तक उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश प्रक्रिया सहित पंसदीदा विषय चुनने का समय समाप्त हो चुका होता है।
सिर्फ डिबार से नहीं असर
उत्तरपुस्तिकाओं को जांचनें में लापरवाही बरतने वाले परीक्षकों को शिक्षा बोर्ड महज बोर्ड कार्य से डिबार कर देता है। उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई नहीं होने से परीक्षक भी निडर बने हुए हैं। दरअसल शिक्षा बोर्ड अपनी उत्तरपुस्तिकाएं जंचवाने के लिए प्रदेश के लगभग 25 हजार सरकारी व्याख्याताओं की सेवाएं लेता है। यह व्याख्याता शिक्षा विभाग के अधीन होते है लिहाजा शिक्षा बोर्ड उनके खिलाफ सीधी कार्रवाई नहीं कर पाता।
यह है ताजा मामला
सीकर जिले के फतेहपुर के नगरदास गांव की दसवीं कक्षा की एक छात्रा के विज्ञान विषय में 43 अंक आए। ग्यारहवीं कक्षा में विज्ञान विषय लेकर अपना कॅरियर बनाने की इच्छुक इस छात्रा को विज्ञान विषय में कम अंक की वजह से कला वर्ग में प्रवेश मिला। संवीक्षा के बाद इस छात्रा के विज्ञान विषय में 51 अंक बढकऱ 94 अंक हो गए। संवीक्षा का परिणाम आने में तीन माह लग जाने के कारण अब इस छात्रा को अपने पसंदीदा विषय के साथ उच्च शिक्षा से वंचित रहना होगा।
इनका कहना है
शिक्षा बोर्ड उच्च शिक्षा प्राप्त सरकारी व्याख्याताओं से कॉपियां जंचवाता है। लापरवाही सामने आने के बाद संबंधित परीक्षक को बोर्ड कार्य से डिबार किया जाता है । शिक्षा विभाग को उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा भी की जाती है। शिक्षा विभाग ने परीक्षकों की गलतियां पकडऩे के लिए ही संवीक्षा व्यवस्था प्रारंभ की है।
मेघना चौधरी , सचिव, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान ।
एक्सपर्ट व्यू
परीक्षकों को महज बोर्ड कार्य से डिबार करने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। लाखों विद्यार्थियों के भविष्य और कॅरियर को ध्यान में रखते हुए लापरवाह परीक्षकों के खिलाफ सख्त विभागीय कार्रवाई करना जरुरी है। महज री-टोटलिंग में ही 40 से 50 अंक का फर्क आ जाए तो यह बेहद गंभीर मामला है। विद्यार्थी पूरे साल कड़ी मेहनत करते है। लेकिन कॉपियां जांचते समय अगर उनका उचित मूल्यांकन नहीं हो तो यह उनके भविष्य के लिए घातक बन सकता है। शिक्षा बोर्ड प्रशासन को भी परिणाम जारी करने से पहले रैंडमली कापियों की जांच करनी चाहिए। इससे भी परीक्षक सर्तक हो जाएंगे और गलतियां नहीं करेंगे। अधिक गलती करने वाले परीक्षक का पूरा मानदेय रोक देना चाहिए। इसके अलावा शिक्षा बोर्ड और शिक्षा विभाग में भी इस गंभीर मामले को लेकर समन्वय होना चाहिए। शिक्षा बोर्ड अगर किसी परीक्षक के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा करे तो शिक्षा विभाग द्वारा भी तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। इससे हालात काफी हद तक सुधर सकते हैं।
डॉ. आलोक चतुर्वेदी- सह आचार्य, सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय।क्च
Published on:
23 Oct 2019 06:05 am
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