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कभी खाली नहीं होता चामुंडा शक्तिपीठ का यह कुंड

अरावली की पहाडि़यों में स्थित चौहान कालीन चामुंडा माता मंदिर चमत्कार से कम नहीं। गर्मी में लावे-से तपने वाले पहाड़ में अथाह जल भंडार का कुंड है। हजारों गैलन पानी निकालने के बावजूद यह ग्यारहवीं शताब्दी से कभी खाली नहीं हुआ बताया जाता है।

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कभी खाली नहीं होता चामुंडा शक्तिपीठ का यह कुंड

कभी खाली नहीं होता चामुंडा शक्तिपीठ का यह कुंड

अजमेर. घटते भूजल स्तर, असंतुलित तापमान और कम बरसात के बीच अरावली की पहाडि़यों में स्थित चौहान कालीन चामुंडा माता मंदिर चमत्कार से कम नहीं। गर्मी में लावे-से तपने वाले पहाड़ में अथाह जल भंडार का कुंड है। हजारों गैलन पानी निकालने के बावजूद यह ग्यारहवीं शताब्दी से कभी खाली नहीं हुआ बताया जाता है।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान द्वारा 11वीं शताब्दी में फायसागर क्षेत्र से सटी अरावली की पहाडि़यों में चामुंडा माता मंदिर का निर्माण कराया गया था। यह मंदिर सदियों से धार्मिक आस्था का केंद्र है। मंदिर परिसर में गंगा मैया का प्राचीन कुंड भी है। किंवदंती के अनुसार यह मंदिर बनने से भी पुराना है।
अथाह जल का कुंड

मंदिर समिति से जुड़े कालू रावत ने बताया कि गंगा मैया कुंड हजारों साल पुराना है। यह करीब तीन फीट गहरा है। किंवदंतियों के अनुसार सम्राट पृथ्वीराज चौहान चामुंडा माता के अनन्य भक्त थे। उन्होंने कुंड के निकट ही मंदिर बनने का स्थान चुना। ग्यारहवीं शताब्दी में इसी कुंड के पानी से समूचे मंदिर का निर्माण कराया गया। कालान्तर में भी मंदिर क्षेत्र का विस्तार हुआ तो इसी कुंड से पानी लिया गया।


कभी नहीं देखा खाली

कालू के अनुसार फायससागर-बोराज क्षेत्र में रहने वाली उनकी कई पीढि़यां मंदिर मंडल से जुड़ी रही हैं। उन्होंने और ग्रामीणों ने कभी गंगा मैया कुंड को खाली नहीं देखा। कुंड से सदियों से हजारों गैलन पानी निकाला जा चुका है, लेकिन यह फिर से भर जाता है।


कुंड के पानी से मंदिर की धुलाई

कुंड धार्मिक आस्था का केंद्र है। इसके पानी से नवरात्र सहित प्रतिदिन मंदिर परिसर की धुलाई की जाती है। पूजन में भी उपयोग में लिया जाता रहा है। लोग चामुंडा माता मंदिर के दर्शन के साथ-साथ कुंड को भी आस्था केंद्र मानते हुए नमन करते हैं। इसमें सिक्के डालकर मनोकमाना मांगते हैं।


किसी को नहीं पता जल स्त्रोत

कुंड में पानी के उद्गम स्थल की किसी को जानकारी नहीं है। ऐसा माना जाता है, कि अजमेर-अरावली पहाड़ क्षेत्र सहस्रों वर्ष पहले समुद्र का हिस्सा था। ऐसे में पहाडि़यों में पानी का स्त्रोत प्राकृतिक है। यह पहाड़ स बूंद-बूंद कर रिसता रहता है। ऐसे ही पानी का स्त्रोत अजमेर-पुष्कर मार्ग में पंचुकंड के समीप है।


फैक्ट फाइल प्राचीन चामुंडा माता मंदिर
650 मिलियन वर्ष पुराना है अरावली-नाग पहाड़
11 वीं शताब्दी में सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया मंदिर
1 हजार साल से ज्यादा पुराना है मंदिर
1 हजार वर्ग गज क्षेत्र में फैलाव
151 शक्तिपीठ में शामिल
1.50 से 3 लाख श्रद्धालु पहुंचते है नवरात्र के दौरान

कोटड़ा क्षेत्र में भी है प्राचीन मंदिर
अजमेर. हजारों साल पूर्व चौहान राजवंश द्वारा स्थापित चामुंडा माता मंदिर सैकड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। फायसागर क्षेत्र से सटी दुर्गम पहाडि़यों में निर्मित मंदिर प्रमुख शक्तिपीठ में शामिल है। इसी तरह कोटड़ा इलाके में भी प्राचीन चामुंडा माता मंदिर बना हुआ है।


कभी जाते नहीं थे श्रद्धालु
पहाड़ी क्षेत्र और बरसाती नालों-गड्ढों के चलते कोटड़ा क्षेत्र के चामुंडा माता मंदिर को श्रद्धालु कम ही जानते थे। लेकिन विवेकानंद स्मारक सहित आसपास में रिहायशी क्षेत्र विकसित होने के बाद लोगों को माता मंदिर की जानकारी मिली। लोगों की पहल और प्रशासनिक सहयोग से इसका जीर्णोद्धार कराया जा रहा है। सुरम्य अरावली -नाग पहाड़ में स्थित यह मंदिर धीरे-धीरे आस्था का केंद्र बन गया है।