
बेरोजगारी बढ़ा रही युवाओं की टेंशन, डिप्रेशन में आकर कर रहे ऐसा काम
सोनम राणावत /अजमेर.
प्रतिस्पर्धा के इस युग में युवाओं में एक-दूसरे से आगे बढऩे की होड़ दिनोदिन बढ़ती जा रही है। कोई सरकारी नौकरी पाने के लिए सालों मेहनत कर प्रतियोगी परीक्षाएं देकर सरकारी नौकरी पाने की इच्छा रखते हैं तो वहीं कुछ युवा प्राइवेट नौकरी में अच्छी सैलेरी पाकर अपना फ्यूचर सिक्योर करना चाहते हैं। इतनी मेहनत के बाद भी सफलता हासिल नहीं होने पर चिंता व मानसिक दबाव युवाओं पर हावी हो रहा है, जिससे युवाओं में डिप्रेशन जैसी खतरनाक बीमारी बढ़ती जा रही है। इतना ही यह बेरोजगारी युवाओं में निराशा व क्रोध का रूप ले रही है जिससे युवाओं में नशे की लिप्तता भी दिन बढ़ती जा रही है।
25 से 35 आयु वर्ग में ज्यादा
मनोचिकित्सक डॉ महेन्द्र जैन ने बताया कि तकरीबन पच्चीस से पैंतीस आयु वर्ग के बेरोजगार युवाओं में डिप्रेशन अधिक देखने को मिल रहा है। इसका मुख्य कारण अपने साथियों की नौकरी व अच्छे सैलेरी पैकेज की तुलना युवा करते हैं जिससे उनमें द्वेष ,क्रोध व चिड़चिड़ापन बन जाता है। इसके कारण डिप्रेशन इस आयु वर्ग के युवाओं में अधिक देखने को मिल रहा है। तकरीबन दस से पन्द्रह मरीज रोजाना उपचार के लिए आते हैं जिनकी संख्या महीने के अंत में तकरीबन डेढ़ सौ से दो सौ पहुंच जाती है।
लड़कियों की तुलना में लडक़ों की अधिक संख्या
- अवसाद के मरीजों में लड़कियों की तुलना में लडक़ों की संख्या अधिक है। डॉ. जैन ने यह भी बताया कि लड़कियों की तुलना में लडक़े तेजी से आवेश में आकर उत्तेजित हो जाते हैं जबकि लड़कियों में हॉर्मोनल बैलेंस संतुलित होने के कारण वह संयमित रहती हैं। इसके चलते गल्र्स की तुलना में बॉयज में अवसाद जैसी खतरनाक बीमारी तेजी से अपने पैर पसार रही है।
खतरनाक है अवसाद
मनोचिकित्सकों की मानें तो कम आयु वर्ग में अवसाद घातक साबित हो सकता है। इतना ही नहीं इस अवसाद से पीडि़त युवा खुद के साथ ही अपने परिवार के सदस्यों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
केस-1
गुडग़ांव में लगी नौकरी छूट जाने के कारण अजमेर निवासी अंकित कुंठित हो कर डिप्रेशन में आ गया। शुरुआत में दूसरी नौकरी ढ़ूंढने की कोशिश की लेकिननहीं मिलने पर तनाव में आ गया। नतीजतन आत्महत्या जैसे भयावह विचार उसके मन में आने लगे। तेजी से उसके वजन में कमी आ गई व काम के प्रति उसकी रुचि खत्म हो गई। पेरेन्ट्स तुरन्त उपचार के लिए लाए जिसकी जांच व तुरन्त काउन्सलिंग की जिससे तकरीबन तीन से चार हफ्ते में वह बिल्कुल ठीक हो गया।
केस - 2
डिपॉर्टमेन्टल स्टोर में काम करने वाली पच्चीस वर्षीय एकता को जब जॉब से हटा दिया तो वह भी काफी निराश हो गई। वह दिनभर रोती रहती जिसके कारण उसमें डिप्रेशन बढ़ गया। माता पिता उपचार के लिए लाए उसकी भी समझाइश की गई। साथ ही दवाइयों व समय पर उपचार मिलने पर अब वह बिल्कुल ठीक हो गई।
यूं पा सकते हैं अवसाद पर काबू-
1.अवसाद के लक्ष्ण दिखते ही मरीज की काउन्सलिंग की जाए।
2. मनोचिकित्सक से तुरन्त लें परामर्श।
3. चिकित्सकिय उपचार।
ये हैं अवसाद के मुख्य लक्ष्ण
--नींद की कमी
-मन की उदासी
-चिड़चिड़ापन
-एकाग्रता में कमी
-नशे की प्रवृत्ति
-क्रोध
Published on:
16 Oct 2018 12:48 pm
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