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राजस्थान की शान है यह इंजीनियरिंग कॉलेज, गल्र्स के साथ पढ़ते दिखेंगे बॉयज

छात्राओं को भारी-भरकम फीस देनी पड़ती है। सरकार ने हाल में इसे अपने नियंत्रण में लेने का फैसला किया है।

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co-education women engineering college

co-education women engineering college

रक्तिम तिवारी/अजमेर।

उत्तर भारत का एकमात्र राजकीय महिला इंजीनियरिंग कॉलेज सह शिक्षा (को-एड) बन सकता है। यहां छात्राओं के साथ छात्रों को प्रवेश मिल सकते हैं। कई इंजीनियरिंग कॉलेज में विभिन्न कोर्स में सीट खाली रहने और वित्तीय परेशानियों को देखते हुए यह चर्चा शुरू हुई है। सरकार, तकनीकी शिक्षा विभाग और शिक्षाविद् विचार-विमर्श के बाद प्रस्ताव तैयार करेंगे।

वर्ष 2007 में स्थापित इस कॉलेज में कम्प्यूटर इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स एन्ड कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल एन्ड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग और अन्य कोर्स संचालित हैं। सभी कोर्स सेल्फ फाइनेंसिंग स्कीम में चलने से छात्राओं को भारी-भरकम फीस देनी पड़ती है। सरकार ने हाल में इसे अपने नियंत्रण में लेने का फैसला किया है।

खाली रहती हैं कॉलेजों में सीट

राज्य में सरकार के झालावाड़, बांसवाड़ा, बारां, जोधपुर , भरतपुर, बीकानेर सहित अजमेर में महिला और बॉयज इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। इसके अलावा निजी इंजीनियरिंग कॉलेज की भरमार है। राज्य के विभिन्न कॉलेज में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में 55 हजार से ज्यादा सीट हैं। इनमें कुछेक सरकारी और निजी कॉलेज को छोड़कर अधिकांश में सीटें पूरी नहीं भरती है। इस बार भी इंजीनियरिंग कोर्स में करीब 40 प्रतिशत से ज्यादा सीट खाली हैं। पिछले वर्ष तो 31 अगस्त तक स्थिति गंभीर थी। तीन बार भी काउंसलिंग के बावजूद 13 हजार 625 सीट ही भर पाई थी। बाद में ओपन प्रवेश नीति से दाखिले हुए।

को-एड बनाने का विचार

प्रदेश के कई सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में सीट पूरी नहीं भर रही। वहां आय की तुलना में खर्चे बेतहाशा बढ़ रहे हैं। हाल में सरकार ने बारां, झालवाड़ और महिला इंजीनियरिंग कॉलेज को अपने नियंत्रण में लेने का फैसला किया है। सीट खाली रहने और कई कॉलेजों की समस्याओं को देखते हुए महिला इंजीनियरिंग कॉलेज को सह शिक्षा (को-एड) का दर्जा देने पर चर्चा शुरू की गई है।

चर्चा के बाद तैयार होगा प्रस्ताव

महिला इंजीनियरिंग कॉलेज को सह शिक्षा का दर्जा देने की प्रक्रिया आसान नहीं है। पहले तकनीकी शिक्षा विभाग, विशेषज्ञ और शिक्षाविद् इसके तकनीकी, वित्तीय पहलुओं पर विचार करेंगे। इसके बाद सरकार को प्रस्ताव तैयार कर सौंपेंगे। विधानसभा में प्रस्ताव पारित होने के बाद कॉलेज सह शिक्षा में तब्दील हो सकेगा।


पॉलीटेक्निक कॉलेज के हाल भी खराब

प्रदेश के सरकारी और निजी पॉलेटेक्निक कॉलेज के हाल भी खराब हैं। इनमें डिप्लोमा इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम की करीब 49 हजार 921 सीट हैं। सरकारी कॉलेज में 4 हजार 566 और निजी कॉलेज में 45 हजार 355 सीट हैं। इन कॉलेज में भी प्रतिवर्ष सीट खाली रहती हैं। बीते साल तो इंजीनियरिंग सहित पॉलीटेक्निक कॉलेज के हाल बहुत बुरे थे। पॉलीटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेज मेें केंद्रीयकृत व्यवस्था के बावजूद दाखिलों में विद्यार्थियों ने खास रुझान नहीं दिखाया था।