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World Ranger Day: कलक्टर साहब! अगले जन्म में आप रेंजर बनें

आज विश्व रेंजर दिवस पर विशेष : वन विभाग में रिक्त पदों की मार क्षेत्रीय वन अधिकारी पद पर भी, कार्यक्षेत्र बढ़ा तो रुतबा भी घटा 18 साल से नहीं हुई भर्ती

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अजमेर

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Amit Kakra

Jul 31, 2019

World ranger day Special Ajmer

World Ranger Day: कलक्टर साहब! अगले जन्म में आप रेंजर बनें

अजमेर.

यूं तो वन्य जीव और वन क्षेत्र की रक्षा के लिए वन विभाग (Forest Department) में सभी अधिकारियों और कार्मिकों की अहमियत है। लेकिन इनमें ‘रेंजर’ (Ranger) का पद ब्रिटिशकाल से प्रमुख रहा है। सीधे तौर पर रेंज शब्द जुड़ते ही उसके कार्यक्षेत्र का दायरा विस्तृत हो जाता है। मौजूदा वक्त नई भर्ती और रिक्त पदों के चलते वन विभाग की हालत नाजुक है। इसमें अब रेंजर पद भी अछूता नहीं है।
राजस्थान सहित सभी प्रदेशों में वन विभाग (Forest Department) के मंडल, उप मंडल स्तर के दफ्तर हैं। इनमें मुख्य वन संरक्षक, उप वन संरक्षक सहित रेंजर (क्षेत्रीय वन अधिकारी) और अन्य पद शामिल हैं। अजमेर वन मंडल क्षेत्र में भीलवाड़ा, टोंक, नागौर और अजमेर जिला आता है। वर्ष 1999-2000 के दशक तक प्रदेश और अजमेर वन मंडल क्षेत्र (Ajmer Forest Department) में रेंजर पद भरे हुए थे। पिछले 18 साल में सेवानिवृत्तियों और नई भर्तियां नहीं होने से हालात बदल चुके हैं।

अधिकांश जगह सेकंड ग्रेडधारक रेंजर

नियमानुसार रेंजर पद फस्र्ट ग्रेड का अधिकारी होता। उसे पुलिस के एसआई (सब इंस्पेटक्टर) की तरह थ्री स्टार वर्दी मिलती है। लेकिन जिले में मौजूदा वक्त अजमेर, पुष्कर, सरवाड़, नसीराबाद, ब्यावर और किशनगढ़ में एक भी फस्र्ट ग्रेड रेंजर नहीं है। सभी स्थानों पर कार्यवाहक सेकंड ग्रेडधारक सहायक रेंजर नियुक्त हैं। यही स्थिति नागौर, भीलवाड़ा, टोंक और राज्य के अन्य जिलों की है।
वन नाके और सुरक्षा का जिम्मा

रेंजर का अहम कार्य वन नाकों सहित वन्य जीवों, वन संपदा की सुरक्षा और अवांछनीय गतिविधियों को रोकना है। लेकिन संसाधनों के नाम पर रेंजर के पास बंदूक (रणथम्भौर-सरिस्का को छोडकऱ) तक नही है। कहीं अतिक्रमण की कार्रवाई, पेड़ों की कटाई अथवा वनक्षेत्र की जमीन रोकने की कार्रवाई के रोकथाम के वक्त हालात बदतर हो जाते हैं। विभाग रेंजर को सिर्फ बाइक उपलब्ध कराता है। जबकि बीस साल पहले तक रेंजर को जीप उपलब्ध कराई जाती थी।
यह रेंजर रहे मशहूर
वी. लॉरेंस, एन्ड्र्यू जेम्स (ब्रिटिशकालीन), भगवान सिंह, जी. अली जैदी, महेशचंद्र टाक और अन्य। इनमें से भगवान सिंह रेंजर से पदोन्नत होकर उप मुख्य वन संरक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए। जैदी मौजूदा वक्त सहायक प्रधान वन संरक्षक पद पर कार्यरत हैं।

..ताकि जंगल की ऐसे ही सुरक्षा हो

ब्रिटिशकाल और आजादी के शुरुआती दौर तक रेंजर पद बेहद अहम था। वन्य क्षेत्रों में आसानी से लोग आवाजाही नहीं कर सकते थे। सेवानिवृत्त फॉरेस्टर सैयद रबनवाज जाफरी ने चर्चित पुराना किस्सा बताया। उन्होंने बताया कि 70 के दशक में कलक्टर ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे पर गए। उस दौरान एक गांव में लोगों से सरकारी कामकाज की चर्चा की। इस दौरान एक ग्रामीण ने उठकर कहा...साहब प्रशासन का कामकाज बहुत अच्छा है, मेरी तो इच्छा है, कि आप अगले जन्म में रेंजर बनें..ताकि जंगल की ऐसे ही सुरक्षा हो सके। यह रेंजर पद के प्रति लोगों के सम्मान का सबसे बड़ा परिचायक है।

ब्रिटिशकाल में था कड़ा कानून
ब्रिटिशकालीन (British time) भारत में वन्य जीव कानून बेहद कड़े थे। ब्रिटिशकाल में अजमेर-मेरवाड़ा केंद्र प्रशासित प्रदेश था। यहां चीफ कमिश्नर (Chief Commissioner) और पुलिस सुप्रिन्टेंडेंट (Superintendent of Police) पद पर अंग्रेज अधिकारी नियुक्त किए जाते थे। कानून और वन्य क्षेत्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक के पास होती थी। वन क्षेत्र में आमजन बिना इजाजत अंदर प्रवेश नहीं कर सकते थे।