
mahesh navami
अलीगढ़। ऐसा कम ही देखा जाता है कि समाज में एक समुदाय अपना वंशउत्पत्ति उत्सव मनाता हो। महेश नवमी का माहेश्वरी समाज से बहुत गहरा नाता है। माहेश्वरी समाज के लोग महेश नवमी को वंशोत्पत्ति महोत्सव के रूप में मनाते हैं। वंशोत्पत्ति महोत्सव का 5151 वर्ष से मनाया जा रहा है। उत्पत्ति राजस्थान से हुई है। 21 जून को पूरे देश में वंशउत्पत्ति उत्सव मनाया जा रहा है।
भगवान महेश और पार्वती ने शाप से मुक्त किया
यह पर्व मुख्य रूप से महादेव महेश और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है। मान्यता है कि जेष्ठ शुक्ल नवमी के दिन भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वती ने ऋषि के शाप के कारण पत्थर बने हुए 72 क्षत्रिय उमराव को शाप मुक्त किया था। पुनर्जीवन देते हुए कहा कि आज से तुम्हारे वंश पर हमारी छाप रहेगी। तुम माहेश्वरी कहलाओगे। भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमराव को पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई। इसलिए भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर वंशोत्पत्ति महोत्सव बड़े भव्य रुप में मनाया जाता है । इस उत्सव की तैयारी पहले से शुरू हो जाती है। इस दिन धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। शोभायात्रा निकाली जाती है,भगवान महेश जी की आरती होती है। यह पर्व भगवान महेश और पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति और आस्था को प्रकट करता है।
राजा सुजान सिंह को शाप दिया था
माहेश्वरी समाज के राकेश मोहता ने बताया कि वह पहले क्षत्रिय समाज से थे। खंडेला नगर के राजा सुजान सिंह को उत्तर दिशा में जाने से रोका गया था, लेकिन उन्होंने उत्तर दिशा में जाकर सप्तऋषि की तपस्या को भंग किया था। तभी सप्त ऋषियों ने राजा और उनके 72 उमराव को शाप दे दिया था और वह पत्थर बन गए थे। तब राजा की रानी चंद्रावती उनके साथ 72 उमरावों की स्त्रियों को लेकर सप्तऋषि की शरण में पहुंची। ऋषि ने रानी चंद्रावती को भगवान महेश के अष्टाक्षर मंत्र का जाप करने को कहा। इसके बाद भगवान शिव ने उनको पुनः मनुष्य रूप में वापस लाए।
आज भी राजस्थान के सीकर के पास लोहागढ़
पश्चिमी उप्र माहेश्वरी सभा के अध्यक्ष राकेश मोहता ने बताया कि भगवान महेश ने कहा कि क्षत्रिय छोड़कर वैश्य धारण करो, जिसे 72 उमराव ने स्वीकार कर लिया। लेकिन उनके हाथों से हथियार नहीं छूटे थे। इस पर भगवान शंकर ने कहा कि सूर्यकुंड में स्नान करो, ऐसा करते ही उनके हथियार पानी में गल गए, उसी दिन से वह जगह लोहागल के रूप में प्रसिद्ध हो गया। आज भी राजस्थान के सीकर के पास लोहागढ़ नाम से स्थान है। जहां लोग स्नान कर भगवान महेश की प्रार्थना करते हैं। तभी से माहेश्वरी समाज महेश नवमी का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाता आ रहा है। माहेश्वरी समाज स्वयं को भगवान महेश और पार्वती की संतान मानते हैं। माहेश्वरी में शिवलिंग स्वरूप में पूजा का विधान नहीं है, माहेश्वरी भगवान महेश, पार्वती व गणेश जी की एकत्रित प्रतिमा या तस्वीर की पूजा करते है, जो 72 उमराव थे उनके नाम पर एक एक जाति बनी,जो 72 गोत्र कहलाए।
ये हैं प्रमुख सिद्धांत
जन्म-मरण विहीन एक ईश्वर भगवान महेश में आस्था और मानव मात्र के कल्याण की कामना माहेश्वरी धर्म के प्रमुख सिद्धांत है। माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है। कर्म करना, प्रभु का नाम जपना है, इनका आधार है। माहेश्वरी अपने धर्म आचरण का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते हैं। आज तकरीबन देश के हर राज्य शहर में माहेश्वरी बसे हुए हैं और अपने अच्छे व्यवहार के लिए जाने जाते हैं।
समाज के साहित्यकार और उद्योगपति
माहेश्वरी समाज से भारतेंदु हरिश्चंद्र, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, बाबू गुलाबराय, विष्णु प्रभाकर जैसे प्रमुख साहित्यकार रहे हैं। उद्योगपतियों में एक लंबी फेहरिस्त है, माहेश्वरी समाज से ताल्लुक रखने वालों में गौतम अडानी, मुकेश अंबानी, राहुल बजाज, सुनील मित्तल, लक्ष्मी निवास मित्तल, कुमार मंगलम बिड़ला, शोभना भरतिया, गुलाब कोठारी आदि शामिल हैं। अलीगढ़ में भी माहेश्वरी समाज के लोग महेश नवमी को धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन माहेश्वरी समाज अपने प्रतिष्ठानों को बंद करके त्योहार के रूप में मनाते हैं। राकेश मेहता ने बताया कि राजस्थान के जैसलमेर, बीकानेर, पोखरण से समाज के लोग निकले हुए हैं। उन्होंने बताया कि राजस्थान में पानी की कमी की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में फैल गए। आज देश में प्रमुख उद्योगपति माहेश्वरी समाज से संबंध रखते है।
Published on:
21 Jun 2018 10:55 am
बड़ी खबरें
View Allअलीगढ़
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
