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संगम के तट पर प्यासी गंगा सरकार के दावे बेकार,गंगा में आचमन लायक नही बचा जल

locationप्रयागराजPublished: Jun 12, 2019 11:10:03 pm

संगम में स्नान के लिए भी हो रही जल की कमीसंतों और गंगा सेवकों ने की बांधों से जल छोड़ने की मांग

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प्रयागराज। कहते हैं, मां गंगा जेठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी पर भागीरथ की कठिन तपस्या के बाद स्वर्ग से धरती पर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का उद्धार करने आई थीं। उनके अवतरण दिवस को गंगा दशहरा के रूप में देश भर में मनाया जाता है। गंगा के धरती पर अवतरण से लेकर अब तक मानव जीवन के लोक कल्याण से जुड़ी है। गंगा आस्था की नदी के साथ ही पूरे भारत के लिए जीवन का आधार है। गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा की धारा करोड़ों लोगों को जीवन देते हुए प्रवाहित हो रही है।

गंगोत्री से गंगासागर तक हजारों तीर्थ स्थल करोड़ों लोगों की आजीविका केवल गंगा पर आश्रित है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में 25 करोड़ से ज्यादा लोगों का जीवन गंगा पर निर्भर है। गंगा के तट पर हजारों संस्कृतियांए सभ्यताएं गंगा की तरह ही प्रवाहमान हैं। लेकिन आज जीवनदायिनी गंगा खुद प्यासी तड़प रही है। मानव की तरह ही पवित्र नदी का जीवन दूषित हो रहा है। गंगा की वर्तमान स्थिति पर जहां संत .महंत चिंतित हैं वहींए गंगा सेवकों के रूप में काम करने वाले भी अपनी चिंता जाहिर कर रहे हैं। संगम नगरी जहां कुछ माह पहले करोड़ों श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा था वही अब शुद्ध जल का दर्शन भी मुश्किल है।

प्रचंड गर्मी बड़ा संकट

उत्तर भारत प्रचंड गर्मी की चपेट में है एक बड़ा कारण यह भी है की गंगा का पानी तेजी से सूख रहा है। हालांकि सूखे की स्थित बांधों के चलते ज्यादा है। गंगा पर बड़ा काम करने वाले हरि चैतन्य ब्रह्मचारी ने कहा कि सदियों पहले धरती पर ऋषिए मुनियों संतों ने नदियों को प्रकृति को अध्यात्म और आस्था से जोड़ा ताकि इनका संरक्षण हो सके। लोगों को ईश्वरी आस्था की तरह इन प्राकृतिक संसाधनों से जोड़ने की कोशिश की लोगों को जागृत किया कि इन्हें बचाना जीवन के लिए बहुत जरूरी है। अब जब विज्ञान आसमान तक पहुंच गया है चांद तारों पर घूम रहा हैए लेकिन धरती पर हमारी पवित्र नदियां संरक्षित नहीं की जा रही। उन्होंने कहा कि जिस तरह से नदियों को दूषित किया जा रहा है इससे वह दिन दूर नहीं होगा जब गंगा इस धरा को छोड़कर पुनः स्वर्ग लोक में वास करेंगी।

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गंगोत्री से आ रही गंगा प्रयाग में दम तोड़ रही

गंगोत्री से तीर्थराज प्रयाग संगम तक आते .आते गंगा की जल धारा दम तोड़ती जा रही है। बीती जनवरी से मार्च माह के बीच आयोजित हुए कुम्भ मेले के दौरान जहां गंगा एक किलोमीटर के दायरे में फैली नजर आ रही थी और संगम में पर्याप्त जल भी मौजूद था। वहीं जून के महीने में गंगा की जलधारा सिकुड़कर कुछ सौ मीटर से भी कम रह गयी हैं। संगम का जलस्तर इतना कम हो गया है कि लोग स्नान भी नहीं कर पा रहे हैं। संगम तट पर मां गंगा की दयनीय स्थिति को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी और प्रोफेसर दीनानाथ शुक्ल ने भी गम्भीर चिन्ता जताई है। कुम्भ के दौरान गंगा नदी में टिहरी और नरौरा डैम से पर्याप्त पानी छोड़ा जा रहा था। जिससे संगम पर श्रद्धालुओं और साधु संतों के लिए पर्याप्त पानी मिल रहा था। लेकिन कुम्भ बीतने के बाद संगम में पानी न छोड़े जाने से जलस्तर बेहद कम हो गया है। जो जल बचा या प्रवाहित हो रहा है वह तेज गर्मी के चलते सूख रहा है।

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सरकार याद रखे वचन

मौजूदा समय में संगम में जल स्तर करीब दो सौ मीटर दूर खिसक कर चला गया है। और रेत के टीले दिखायी दे रहे हैं। संगम पर स्नान करने आने वाले श्रद्धालु और यहां पर धार्मिक कर्मकांड कराने वाले तीर्थ पुरोहितों में गंगा की इस दुर्दशा को लेकर नाराज है। लगातार घट रहे जल स्तर को लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी ने भी अपनी गहरी चिन्ता जतायी है। उन्होंने एक बार फिर सीएम योगी को साधु संतों को दिया गया वचन याद दिलाते हुए संगम में पर्याप्त पानी की उपलब्धता बनाये रखने की मांग की है। दीनानाथ शुक्ल ने कहाए गंगा की हालत चिंताजनक है। गंगा को हिमालय में ही जगह.जगह बांध बनाकर रोके जाने और हरिद्वार आते.आते उसका जल नहरों में सिंचाई और दिल्ली.हरियाणा जैसे राज्यों की पेयजल आपूर्ति के लिए भेजे जाने से गंगा का जल स्तर कम हो रहा है। उनके मुताबिक इन दिनों पड़ रही भीषण गर्मी से भी नदियों के जल का तेजी से वाष्पीकरण भी हो रहा है। उन्होंने गंगा नदी की सेहत सुधारने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार से गंगा में बने बांधों से पर्याप्त जल छोड़े जाने की भी मांग की है। ताकि जीवनदायिनी गंगा के अस्तित्व को बचाया जा सके।

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