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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं अपनी जरूरत पूरी करने के लिए भरण पोषण की है हकदार

यह आदेश जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने दिया है। मामले में आगे कहा कि जहां पत्नी कहती है कि उसे खुद को और अपनी बेटी के भरण पोषण में बहुत कठिनाइयां हैं, जबकि उसके पति की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है, पत्नी पति से भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं अपनी जरूरत पूरी करने के लिए भरण पोषण की है हकदार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं अपनी जरूरत पूरी करने के लिए भरण पोषण की है हकदार

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि जरूरत के अनुसार भरण पोषण के लिए महिलाएं हकदार है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि एक मुस्लिम महिला अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है। यह आदेश जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने दिया है। मामले में आगे कहा कि जहां पत्नी कहती है कि उसे खुद को और अपनी बेटी के भरण पोषण में बहुत कठिनाइयां हैं, जबकि उसके पति की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है, पत्नी पति से भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी।

याचिकाकर्ता अपनी बेटी के साथ प्रधान न्यायाधीश / एडीजे, परिवार न्यायालय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए पुनरीक्षण याचिका के साथ न्यायालय का रुख किया। प्रधान न्यायाधीश व एडीजे, परिवार न्यायालय, लखनऊ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया था, जिसमें विरोधी पक्षकार (पक्षकार नंबर 2 पति) से भरण-पोषण की मांग की गई थी। इस मामले में महिला ने अदालत के सामने पेश किया कि उसे अपने ससुराल वालों से मानसिक और शारीरिक यातना का सामना करना पड़ा और उसे अपनी बेटी के साथ अपना वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा।


इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष आगे यह तर्क दिया गया कि निचली अदालत ने उसके ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता पर विचार नहीं किया और सीआरपीसी की धारा 125 की याचिका को खारिज करते हुए इस अनुमान पर आदेश पारित किया कि महिला ने स्वेच्छा से पति को छोड़ दिया, इसलिए उसे भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। दूसरी ओर पति के वकील ने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, याचिकाकर्ता नंबर 1 एक तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी है और इसलिए वह मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं है।

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महिलाएं कर सकती है दावा

लतीफी और अन्य बनाम भारत संघ, ,इकबाल बानो बनाम यूपी राज्य और अन्य, (2007) 6 एससीसी 785 और शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य (2017) 9 एससीसी 1 मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण का दावा कर सकती है और यहां तक कि एक तलाकशुदा महिला भी भरण पोषण का दावा कर सकती है।