याचिकाकर्ता अपनी बेटी के साथ प्रधान न्यायाधीश / एडीजे, परिवार न्यायालय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय और आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए पुनरीक्षण याचिका के साथ न्यायालय का रुख किया। प्रधान न्यायाधीश व एडीजे, परिवार न्यायालय, लखनऊ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया था, जिसमें विरोधी पक्षकार (पक्षकार नंबर 2 पति) से भरण-पोषण की मांग की गई थी। इस मामले में महिला ने अदालत के सामने पेश किया कि उसे अपने ससुराल वालों से मानसिक और शारीरिक यातना का सामना करना पड़ा और उसे अपनी बेटी के साथ अपना वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष आगे यह तर्क दिया गया कि निचली अदालत ने उसके ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता पर विचार नहीं किया और सीआरपीसी की धारा 125 की याचिका को खारिज करते हुए इस अनुमान पर आदेश पारित किया कि महिला ने स्वेच्छा से पति को छोड़ दिया, इसलिए उसे भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। दूसरी ओर पति के वकील ने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, याचिकाकर्ता नंबर 1 एक तलाकशुदा मुस्लिम पत्नी है और इसलिए वह मुस्लिम महिला अधिनियम 1986 और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं है।
महिलाएं कर सकती है दावा लतीफी और अन्य बनाम भारत संघ, ,इकबाल बानो बनाम यूपी राज्य और अन्य, (2007) 6 एससीसी 785 और शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य (2017) 9 एससीसी 1 मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण का दावा कर सकती है और यहां तक कि एक तलाकशुदा महिला भी भरण पोषण का दावा कर सकती है।