नागा किसी एक स्थान पर उतने दिन ही रुकते हैं जब तक उनकी जरूरत होती है। प्रयागराज में मकर संक्राति से पहले ही नागा आ गये थे और मकर संक्राति, मौनी अमावस्या व बसंत पंचमी का तीन शाही स्नान में नागाओं ने संगम में डुबकी लगायी। इसके बाद नागा सीधे महादेव की नगरी काशी में पहुंच गये हैं। यहां के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट से लेकर गंगा के अन्य घाट पर अब नागा दिखने लगे हैं। अभी बहुत कम संख्या में ही नागा वहां पर पहुंचे हैं लेकिन प्रयागराज से उनकी रवानगी का सिलसिला शुरू हो गया है।
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महाशिवरात्रि पर करते हैं गंगा स्नान, शिव भक्ति से मिलती है ताकत
महाशिवरात्रि पर नागा गंगा में स्नान करते हैं और शिवभक्ति करके अपनी शक्ति को बढ़ाते है। काशी में शिवरात्रि के बाद नागा अपने खास स्थान पर चले जाते हैं। प्रयागराज में अभी लाखों की संख्या में नागा जुटे हुए हैं लेकिन धीरे-धीरे उनकी रवानगी शुरू हो गयी है। सप्ताह भर में अधिकांश नागा काशी में पहुंच जायेंगे। इसके बाद एक पखवारे तक काशी में ही प्रवास करेंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार कुंभ में स्नान के बाद काशी में जाकर गंगा स्नान करने से अधिक पुण्य मिलता है इसलिए नागा अब काशी पहुंचने लगे हैं।
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महाशिवरात्रि पर नागा गंगा में स्नान करते हैं और शिवभक्ति करके अपनी शक्ति को बढ़ाते है। काशी में शिवरात्रि के बाद नागा अपने खास स्थान पर चले जाते हैं। प्रयागराज में अभी लाखों की संख्या में नागा जुटे हुए हैं लेकिन धीरे-धीरे उनकी रवानगी शुरू हो गयी है। सप्ताह भर में अधिकांश नागा काशी में पहुंच जायेंगे। इसके बाद एक पखवारे तक काशी में ही प्रवास करेंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार कुंभ में स्नान के बाद काशी में जाकर गंगा स्नान करने से अधिक पुण्य मिलता है इसलिए नागा अब काशी पहुंचने लगे हैं।
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