23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में शुरू हुआ मुकदमा,आज आएगा फैसला

चार सौ साल से ज्यादा पुराना है अयोध्या विवाद

2 min read
Google source verification
Trial in Supreme Court started against this decision of Allahabad HC

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में शुरू हुआ मुकदमा,आज आएगा फैसला

प्रयागराज। अयोध्या विवाद में चार सौ सालों से अधिक समय से विवादित जमीन को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट अपना ऐतिहासिक फैसला सुना सकता है। जिस पर देश भर की नजरें टिकी हुई है। साथ ही एक बार फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसलें को लोग याद कर रहे है। जिसे किसी पक्ष ने स्वीकार नही किया था। तीन जजों वाली पीठ राम जन्मभूमि व बाबरी मस्जिद ज़मीन मामले की सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया था। जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

दर्ज तारीखों के अनुसार अयोध्या मामले का विवाद दशकों पुराना है। वहीं इस मामले को लेकर दो संप्रदायों के साथ ही राजनीतिक दलों में रस्साकशी दशकों से चलती आ रही है। राम जन्म भूमि का विवाद 1989 में इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था। जिसके बाद 2010 में इस मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अपना फैसला सुनाया था। जिसमें पूर्व न्यायमूर्ति एस यू खान न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल पूर्व न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा शामिल थे। इनके फैसलें से पहले अदालत में लंबी सुनवाई बहस और दलीलें पेश की गई है।

सुनवाई करते हुए 2003 में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के विवादित जगह पर आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को खुदाई करवाने का निर्देश दिया था। जिसका उद्देश्य था कि मंदिर और मस्जिद के दावों की सच्चाई क्या है, इसका पता लगाया जा सके। खुदाई में मिले सबूतों में कहा गया था कि जिस जगह पर मस्जिद बनाई गई थी। कभी वहां हिंदू मंदिर भी हुआ करता था। जिसको लेकर हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अपना फैसला सुनाया था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डीवी शर्मा की बेंच ने अयोध्या पर अपना फैसला सुनाते हुए फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्से में किया जाए ।राममूर्ति वाला पहला हिस्सा रामलला विराजमान को दिया गया। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया। बाकी बचा तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया था।

तीन जजों वाली बेंच ने इस फैसले को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट को आधार मानते हुए दिया था। इसके अलावा भगवान के जन्म होने की मान्यता को भी इस फैसले में शामिल किया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि साढ़े चार सौ साल से मौजूद एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती ।लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को किसी पक्ष ने स्वीकार नहीं किया और सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ अपील दायर की।

30 दिसंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया और दिसंबर में हिंदू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट में पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दे दिया। तब से यथास्थिति बरकरार है जिस पर आज सुप्रीम कोर्ट में चालीस दिन की मैराथन सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस ऑफ़ इण्डिया की बेंच यह फैसला सुनाएगी।