तब कचहरी के पास रेडियो सुनकर हुआ फरार अलवर के इतिहासके जानकार एडवोकेट हरिशंकर गोयल बताते हैं कि अलवर में 46 लोगों की गिरफ्तारी का कचहरी के पास रेडियो पर समाचार सुनकर मैं फरार हो गया। सात दिन तक अलवर शहर व गांव में रहा, पैदल पड़ीसल स्टेशन आकर रेवाडी पहुंचा। बाद में दिल्ली पहुंचने के बाद बाडमेर, जैसलमेर और सिरोही को छोडकऱ पूरा राजस्थान पांच बार घूमा। आपातकाल के दौरान वेश बदलकर बंदियों से मिला और उनके परिवार वालों को समाचार व हर तरीके से सहयोग जुटवाया। गोयल बताते हैं कि फरारी के 11 महीने में गंगानगर की यात्रा सुखमयी और बांसवाड़ा यात्रा आर्थिक कष्ट भरी रही। इस दौरान पैदल ही पहाड़ी, जंगलों की यात्रा की और एक बार एमएलए वि_ल भाई के यहां से पुलिस थाने पकड़ कर ले गई, लेकिन वहां से मैं चकमादेकर आदिवासी भीलों के मेले से भागकर बांसवाडा होकर अहमदाबाद पहुंच गया। इसके बाद राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश का आदिवासी क्षेत्र घूमने और समझने का मौका मिला। बाद में 30 अप्रेल 1975 को खेडली गंज से पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। इससे पूर्व 5 बार पुलिस को चकमा देकर जयपुर, गंगानगर, अजमेर व उदयपुर भाग निकला था, एक मई को मुझे जयपुर भेज दिया। मेरी गिरफ्तारी के तीसरे दिन दिल्ली व मुम्बई से पुस्तकों के बंडल आ गए और एक हफ्ते में पूरे से पत्र। गोयल का कहना है कि यह उनकी फरारी जीवन का नेटवर्क था। देश में आपातकाल खत्म होने के बाद 23 जनवरी को अलवर जेल से रिहा किए गए। एक महीना अलवर जेेल में गुजारना पड़ा था।