अलवर जिले में वैसे तो विरासत की कमी नहीं, लेकिन कालीघाटी व जिंदोली घाटी कुछ मायनों में अन्य विरासतों से अलग है। स्टेट समय में सरिस्का स्थित कालीघाटी से आगे रास्ते के बजाय ग्वाडे थे। ग्रामीणों को यहां से जाने के लिए स्टोन पिचिंग का रास्ता था जो कि कांकवाडी गेट के पास निकलता था। इससे आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था। अलवर स्टेट के पूर्व शासक जयसिंह ने कालीघाटी से टहला से रोड बनाने की योजना तैयार की। उबड़ खाबड़ व पथरीली जमीन होने के कारण यहां रोड बनाना आसान नहीं था। उसी दौर में पूर्व शासक जयसिंह ने हाथी पर बैठकर पूरे क्षेत्र का निरीक्षण किया और फिर कालीघाटी से टहला गेट तक रोड का खुद ही ले आउट प्लान दिया। बाद में रिलीफ कार्य के तहत इस रोड का निर्माण कराया, जो वर्तमान में विद्यमान है।
इस मार्ग के बनने से अलवर से टहला का सीधा जुड़ाव संभव हो सका। वहीं टहला, खोह दरीबा, नारायणी माता, बलदेवगढ़, भानगढ़ आदि गांव की राह आसान हो सकी। अलवर पूर्व रियासत से जुड़े नरेन्द्र सिंह राठौड़ बताते हैं कि पूर्व शासक जयसिंह स्वयं तकनीक के जानकार थे। इसी कारण कालीघाटी रोड व जिंदोली घाटी पर 52 मोड़ की सडक़ का निर्माण हो सका। पूर्व में यहां भी तेलियाबास से स्टोन पिचिंग रोड था, जो कि जिंदोली की ओर निकलता था। जिंदोली घाटी पर 52 मोड की सडक़ का ले आउट भी पूर्व शासक जयसिंह ने ही दिया था।
हालांकि अब जिंदोली घाटी पर सुरंग का निर्माण हो चुका है और अलवर जिले की विरासत जिंदोली घाटी पर 52 मोड की सडक़ खंडहर होकर अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। स्टेट समय से लेकर तकनीकी प्रधान युग तक जिंदोली घाटी पर 52 मोड की सडक़ की तर्ज पर कोई दूसरी विरासत नहीं बन सकी। इस अमूल्य धरोहर को सहेजने के बजाय सरकार और प्रशासन इस ओर आंखे मूंद चुका है।