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कागजों में ही कला शिक्षा: न कालांश और न ही पढ़ाई, फिर भी नंबर फुल

.विद्यार्थी के संर्वागीण विकास के लिए किताबी शिक्षा के साथ सह शैक्षिक गतिविधियों का महत्व नकारा नहीं जा सकता है। प्रदेश में कला शिक्षा के नाम का पीरियड कागजों में दिखाया जाता है जिसके न तो सरकारी स्कूलों में शिक्षक हैं और न ही इनकी कोई पढाई होती है। हर साल इसका पेपर भी होता है जिसमें पास होना भी जरूरी है। विद्यार्थियों को कला शिक्षा में उत्तीर्ण भी कर दिया जाता है लेकिन उन्हें कला के नाम पर कुछ पता नहीं होता है।

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कागजों में ही कला शिक्षा: न कालांश और न ही पढ़ाई, फिर भी नंबर फुल

कागजों में ही कला शिक्षा: न कालांश और न ही पढ़ाई, फिर भी नंबर फुल


अलवर.विद्यार्थी के संर्वागीण विकास के लिए किताबी शिक्षा के साथ सह शैक्षिक गतिविधियों का महत्व नकारा नहीं जा सकता है। प्रदेश में कला शिक्षा के नाम का पीरियड कागजों में दिखाया जाता है जिसके न तो सरकारी स्कूलों में शिक्षक हैं और न ही इनकी कोई पढाई होती है। हर साल इसका पेपर भी होता है जिसमें पास होना भी जरूरी है। विद्यार्थियों को कला शिक्षा में उत्तीर्ण भी कर दिया जाता है लेकिन उन्हें कला के नाम पर कुछ पता नहीं होता है। इसमें सबसे बड़ी बात यह भी है कि कला शिक्षा के नाम पर विद्यार्थियों को बजट तक दिया जाता है।

राज्य सरकार इस बजट का उपयोग विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की बजाय अन्य कामों में खर्च कर रही है। इसका यह भी परिणाम यह सामने आ रहा है कि कला शिक्षक वर्षो से बेरोजगार हैं।

राजस्थान सरकार ने माध्यमिक स्तर तक कला शिक्षा के नाम से कला शिक्षा की पुस्तकें खरीद कर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। कला शिक्षा का शिक्षण देने के नाम पर न तो शिक्षकों के पद है और न कला शिक्षण की सामग्री है। ऐसे में बिना पुस्तक और शिक्षकों के माध्यमिक स्तर तक अंक तालिका में 100 अंकों का मूल्यांकन कर दिया जाता है।

अनिवार्य कला शिक्षाअनिवार्य कला शिक्षा के संगीत, चित्र कला शिक्षकों के पद सृजित नहीं होने के कारण 1992 से बच्चों को प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है। लापरवाही का यह सिलसिला पूरे 30 साल से चला आ रहा है। प्रदेश में 5000 से अधिक आर्ट रूम राज्य सरकार ने बनवा दिए हैं। आर्ट एंड क्राफ्ट में चित्र बनाना, मूर्ति बनाना ,कोलाज बनाना ,संगीत सिखाना, नृत्य इत्यादि है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। स्कूलों में इनको पढ़ाने के लिए शिक्षकों की कोई भर्ती नहीं हुई है कारण उनका पद सृजित नहीं हुआ है।

यह है महत्वपूर्ण बात- कक्षा 1 से 10 तक अनिवार्य कला शिक्षा विषय के लिए कला शिक्षकों ( चित्रकला संगीत) के द्वितीय व तृतीय श्रेणी नियुक्ति की जानी चाहिए।

-कक्षा 1 से 10 तक 1992 से कला शिक्षा ( चित्रकला संगीत) अनिवार्य है।-5 हजार आर्ट एण्ड रूम बनकर तैयार है लेकिन उन में कला शिक्षा शिक्षण देने के लिए कला शिक्षक नियुक्त नही है

- सन 1992 में शिक्षा विभाग ने चित्रकला व संगीत कक्षा 10 में अनिवार्य विषय होते हुए भी पद समाप्त कर दिए।-1992 से हजारों चित्रकला संगीत डिग्री अभ्यर्भी भर्ती आस में आयु सीमा से बाहर होकर बेरोजगार हो गए। 15 हजार बेरोजगार चित्रकला संगीत में डिग्री धारी अभ्यर्थी राजस्थान में है।

- प्रति वर्ष 76 लाख रुपए कला उत्सव (चित्रकला संगीत नृत्य आदि प्रतियोगिता में खर्च कर दिए जाते

छह माह से कला शिक्षण व्यवस्था नहींकला शिक्षा विषय की अनुशंसा को लागू कर प्रदेश के बच्चों को कला शिक्षा शिक्षण की व्यवस्था करनी थी जो 6 माह से नहीं हो रही है।

-विनीत चतुर्वेदी, जिलाध्यक्ष, कला शिक्षा संघर्ष समिति।