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ऊंचे पहाड़ पर निर्मित देवी धौलागढ़ का मंदिर जन आस्था का केंद्र, कई प्रदेशों से आते हैं श्रद्धालु

देवी के वैशाख कृष्ण पक्ष पंचमी से एकादशी तक सात दिवसीय लक्खी मेला भरता है।

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कठूमर. बहतूकला पंचायत में पहाड़ पर देवी धौलागढ़ का मंदिर जनआस्था का केंद्र है। किंवदंति है कि बल्लूपुरा में डोडरावती ब्राह्मण के धौला नाम की कन्या का जन्म हुआ। बचपन में माता-पिता का निधन होने से वह भाई-भाभी के पास रही। बड़ी हुई तो गायों को चराने जंगल में जाने लगी। शाम को भाभी गायों का दूध दुहने बैठती तो दूध नहीं निकलता। धौला पर शक कर भाई-भाभी ने उसका पीछा किया तो देखा कि गाय के थनों से एक स्थान पर स्वत: दूध गिर रहा है। वे अचंभित हो गए। इधर धौला पहाड़ों में चली गई।

लाखा ने बनवाया मंदिर

कालांतर में व्यापारी लाखा बंजारा यहां से निकलते समय रात्रि विश्राम को पहाड़ पर डेरा डाल दिया। वहां देवी प्रकट होकर बंजारे से गाडों में भरे माले के बारे में पूछा तो उसने झूठ बोलते हुए हीरा-जवाहरात को कपास व नमक बता दिया। उत्तर पाकर देवी चली गई। सुबह व्यापारी ने गाडों में नमक, कपास देख विलाप करने लगा। देवी के प्रकट होने पर व्यापारी ने क्षमा मांगी तो देवी ने गाडों में माल पहले जैसा कर दिया। लाखा ने उसी स्थान पर मंदिर व पानी का कुंड बनवाया, जो अभी विद्यमान है। धीरे-धीरे मंदिर का विकास होता गया। मंदिर तक 108 सीढि़यां हैं। यात्रियों के लिए सभी मूलभूत सुविधाएं हैं।

सात दिन तक मेला

देवी के वैशाख कृष्ण पक्ष पंचमी से एकादशी तक सात दिवसीय लक्खी मेला भरता है। इसमें राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात, कोलकाता, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश सहित अन्य प्रदेशों से लाखों श्रद्धालु आते हैं। नवरात्र में कई पदयात्राएं आती हैं। नवजात शिशुओं का मुंडन, नवविवाहित जोड़े की जात तथा मनोकामनाएं पूर्ण होने पर भंडारे, छप्पन भोग, कीर्तन के कार्यक्रम किए जाते हैं।