नवनिर्मित दिल्ली-मुम्बई हाइवे अलवर के रामगढ़,लक्ष्मणगढ़,रैणी तहसील से होकर निकल रहा है । इन जगहों में रैणी क्षेत्र अत्यन्त पिछड़ा हुआ है। इस क्षेत्र में मजदूर,श्रमिक,निजी संस्थाओं में काम करने वाले युवाओं की बहुतायात है। पानी की कमी व बंजर भूमि की अधिकता से यहां का किसान अपनी जमीन का सही उपयोग नहीं कर पा रहा है। सरकार आगामी निर्धारित परियोजना में यदि औद्योगिक कॉरिडोर बनाती है तो इस क्षेत्र से पिछड़ेपन का धब्बा धुल सकता है और यह परियोजना आगामी दिनों में रैणी क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो सकती है। रैणी क्षेत्र में जमीनों की डीएलसी दर कम होने के कारण उद्योगों की स्थापना के लिए उपयुक्त है। यहां कम लागत में उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं व बेरोजगारी अधिक होने के कारण उद्योगों में श्रमिको की कमी नहीं रहेगी।
औद्योगिक संस्थानों की हो स्थापना एडवोकेट सत्येन्द्र सैदावत, मदन परबैणी का कहना है कि यह क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से आगरा, भरतपुर, जयपुर, बांदीकुई, दौसा, दिल्ली के मध्य केन्द्र की भांति है। रैणी क्षेत्र में हाइवे के किनारे औद्योगिक संस्थानों की स्थापना सरकार को करनी चाहिए जिससे रैणी क्षेत्र मुख्य धारा में आ सके व रैणी का विकास हो सके।
रैणी निवासी पूर्व कानूनगो श्रीकांत शर्मा,मुकेश मीणा,बाबूलाल खडोलिया का कहना है कि डीएलसी दर कम होने के कारण रैणी होकर निकल रहे हाइवे के लिए यहां के किसानों को कम रुपए में अपनी जमीन देनी पड़ी जिससे किसानों को भारी आर्थिक क्षति हुई। अब सरकार यहां पर औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करती है तो किसानों को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकती है व आने वाली पीढिय़ों के लिए यह परियोजना लाइन लाइन हो सकती है।
वर्जन
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इस परियोजना का नाम ही दिल्ली- मुम्बई इन्डस्ट्रीयल कॉरिडोर है,अब सरकार नए उद्योगों की स्थापना का निर्धारण कहां पर करें यह उच्च स्तरीय मामला है।
-विनोद भारतीय, प्रोजेक्टर मैनेजर, हाइवे निर्माता कंपनी केसीसी।
-विनोद भारतीय, प्रोजेक्टर मैनेजर, हाइवे निर्माता कंपनी केसीसी।