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Dholagarh Devi: धौलागढ में ब्रह्मचारिणी रूप में विराजमान है माता, मंदिर तक जाने के लिए हैं 163 सीढ़ियां

Dholagarh Devi Mandir: अलवर जिल के कठूमर क्षेत्र में धौलागढ़ में देवी का प्राचीन मंदिर है। मंदिर का इतिहास रामायण काल का बताया जाता है।

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अलवर

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Santosh Trivedi

Oct 06, 2024

Dholagarh Devi alwar

Dholagarh Devi Mandir: अलवर जिल के कठूमर क्षेत्र में धौलागढ़ में देवी का प्राचीन मंदिर है। यहां माता ब्रह्चारिणी रूप में विराजमान है। मंदिर के पुजारी दिनेश शर्मा ने बताया कि हमारे परिवार की 15वीं पीढ़ी माता की पूजा कर रही है। इतिहासकारों के अनुसार चारण भाट आला उदल थे। इसमें उदल की इष्ट देवी धौलागढ़ की देवी है। मंदिर का इतिहास रामायण काल का बताया जाता है। नेपाल से आए पंडितों के अनुसार राम व रावण के युद्ध के दौरान सुग्रीव का पुत्र दधिवल ने धौलागढ़ देवी की पूजा कर शक्ति मांगी। इसके बाद युद्ध में गया।

उन्होंने बताया कि जानकारी के अनुसार अलीगढ के बंजारा व्यापारी को माता ने दर्शन दिए और इसके बाद बंजारा ने माता का मंदिर बनवाया। आज भी बंजारा व्यापारी का परिवार यहां दर्शनों के लिए आता तो कौड़ी ही चढ़ाता है। माता की प्रतिमा संगमरमर की है। माता के साथ-साथ चौसठ योगिनी में से जया और विजया भी यहां विराजमान है। यहां नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ रहती है।

माता का मेला वैशाख मास की पंचमी से एकादशी तक भरता है। सप्तमी की मध्यरात्रि को माता का जन्म बताया जाता है। इसलिए इस दिन विशेष श्रृंगार होता है। पुजारी ने बताया कि मंदिर में विशेष बात यह है कि अन्य देवी मंदिरों में माता देवी रूप में सिंह पर विराजमान है और शेर का मुंह दाई तरफ होता है लेकिन यहां पर माता के समीप शेर खड़ा हुआ है और उसका मुंह उत्तर की तरफ है जो कि शांति और प्रेम का प्रतीक है। मंदिर तक जाने के लिए 163 सीढ़ियां हैं। साथ ही वाहन से जाने की भी सुविधा है। यहां पर अलवर जिले के अलावा जयपुर, भरतपुर, नासिक, पुणे, यूपी सहित अन्य जगहों से भक्त दर्शनों के लिए आते हैं।