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दीपावली नजदीक, चाक की तेज हुई रफ्तार, मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

दिवाली की तैयारियों में जुटे कुम्हार परिवार, बना रहे मिटटी के आइटम

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अलवर

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mohit bawaliya

Oct 30, 2023

दीपावली नजदीक, चाक की तेज हुई रफ्तार, मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे कारीगर

मिट्टी के दीपक तैयार करता कुम्हार

दीपावली पर्व नजदीक आने के साथ ही तैयारियां अब जोर पकडऩे लगी हैं। उपखण्ड मुख्यालय सहित सम्पूर्ण क्षेत्र में मिट्टी के दीपक और मटकी बनाने वाले कुम्हार समाज के लोग शीघ्रता से अपना यह कार्य पूरा करने में जुट गए हैं। अपने पुश्तैनी धंधे में जुटे इस समाज के लोगों का कहना है कि मिट्टी के दीपक का महत्व अलग
ही होता है।
दशकों से समाज के लोग मिट्टी के बर्तन तैयार कर रहे हैं। कुम्हार समाज की ओर से मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए उपयोग में लिया जाने वाला चाक बड़ी मेहनत से पत्थर के कारीगरों की ओर से तैयार किया जाता है। इस पर सारे मिट्टी के बर्तन बनते हैं। कुछ लोगों के पास अब इलेक्ट्रिक चाक है, जिसमें मेहनत कम लगती है। इस पर भी सारे मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं। चाक पर अंगुलियां घुमाते ही दीपक, मटका, घड़ा, करवा, गुल्लक सहित कई अन्य उपकरण तैयार हो जाते हैं। कुम्हार समाज के लोगों ने बताया कि मिट्टी के दीपकों का दीपावली व पूजा कार्य में बड़ा महत्व होता है। ये पवित्र माने जाते हैं।


लागत के हिसाब से नहीं मिल रहा मुनाफा

मिट्टी के दीपक बनाने के लिए एक माह पहले से ही तैयारी में जुटना पड़ता है। दीपक सहित अन्य बर्तन बनाने के लिए दूर-दराज के गांवों से मिट्टी लाते हैं। उन्हें आकार देते हैं, फिर पकाते हैं। कई बार दीपक बेकार हो जाते हैं। दिन-रात वे मेहनत करते हैं। इनकी मेहनत तब साकार होगी, जब ज्यादा से ज्यादा लोग। इनके तैयार किए गए मिट्टी के दीपक खरीदेगा। एक दिन में एक व्यक्ति मिट्टी के 100 दीपक बनाता है। प्रति दीया 3 रुपए मुश्किल से बिकता है, ऐसे में 1 व्यक्ति को मात्र 100 रुपए की मजदूरी ही मिल पाती है। इस कारण सरकारी प्रोत्साहन की आवश्यकता है।

युवा पीढ़ी हो रही कलाकारी से दूर

युवाओं का कहना हैं कि वर्तमान में प्लास्टिक, कांच आदि के तरह-तरह के बर्तन आ गए हैं। इससे मिट्टी के बर्तनों की मांग कम है। काफी मेहनत के बावजूद मुनाफा बहुत कम है। इसलिए युवा पीढ़ी अब इस धंधे में नहीं आना चाहती। अभी मिट्टी के दीये की कीमत 2 रुपए हैं। इसके अलावा धूपिया 50 रुपए, गुल्लक 70 रुपए की कीमत में बेच रहे हैं। प्लास्टिक और चाइनीज की वस्तुओं की कम कीमत के कारण मिट्टी से बने दिए एवं बर्तन की डिमांड कम रहती है। इस काम को करने वाले लोगों को सरकार की ओर से किसी भी प्रकार से कोई प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। इस वजह से यह कला विलुप्त होती जा रही है।