उल्लेखनीय है कि करीब 37 हजार करोड़ रुपए लागत की इस्टर्न कैनाल योजना अलवर सहित 13 जिलों में चम्बल से पेयजल व सिंचाई के लिए पानी लाने के लिए पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में घोषित की गई। बाद में राज्य की कांग्रेस सरकार ने भी इस परियोजना को 13 जिलों के लिए महत्वपूर्ण माना और आगे बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन लागत राशि 37 हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था पर बात अटक गई।
राज्य सरकार इस्टर्न कैनाल योजना को केन्द्र सरकार से राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग कर चुका है, लेकिन केन्द्र सरकार ने अभी तक इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा नहीं दिया है। इस कारण यह सतही जल परियोजना मूर्तरूप नहीं ले सकी है। केन्द्र व राज्य सरकार के बीच झूल रही इस्टर्न कैनाल योजना के धरातल पर नहीं आने का सबसे बड़ा नुकसान अलवर जिले को झेलना पड़ा है। कारण है कि यहां कोई भी सतही जल परियोजना नहीं है, इस कारण पूरा जिला पेयजल समस्या से त्रस्त है। पेयजल समस्या निराकरण के लिए राजनीतिक दलों की ओर से कभी चम्बल, कभी यमुना से पानी लाने की घोषणा की जाती रही है, लेकिन इनमें से कोई भी योजना अभी मूर्तरूप नहीं ले सकी है। इस बार भी राज्य बजट में अलवर में सतही जल परियोजना को मूर्तरूप देने के प्रयास चिंता जताने तक ही सीमित रहे।