-12 मीटर तक होती है ऊंचाई
-10 सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं फलियां
-30 तक होती है फलियों में बीजों की संख्या
-10 साल उगने योग्य होता है इसका बीज लाभकारी वनस्पति के लिए बना संकट
विलायती बबूल के पौधों के आसपास ढाक, धोक, कैर, सालर, खैरी, रोंझ के अलावा औषधीय पौधे गुग्गल, बांसा, चिरमी, ग्वार पाठा, सफेद आक, माल कांगनी, सफेद मूसली, मरोड़ फली, शतावर, गोखरू, जंगली प्याज, जटरोफा, अश्वगंधा व इंद्र जैसी कई वनस्पतियों के लिए संकट बन गया है।
विलायती बबूल में कांटे होने के कारण यह पशु पक्षियों के लिए नुकसानदेह रहता है। पशु हरा चारे की आस में इन कटीले पौधों में फंस जख्मी होने के साथ ही पक्षी भी कांटों में फंसकर घायल हो जाते है।
अलवर जिले में वन विभाग ने विलायती बबूल के पौधे हटाने की प्रक्रिया शुरू कर करीब 160 हेक्टेयर जमीन से विलायती बबूल के पेड़ हटाए, लेकिन सरकारी स्तर पर किए गए ये प्रयास कीकर के तेजी से बढ़ते दायरे के आगे नाकाफी रहे हैं। वन विभाग ने अलग-अलग योजनाओं के तहत राज्य योजना के तहत नाबार्ड, कैंपा, कैंपा डीएफएल जैसी अनेकों योजनाओं में विलायती बबूल के पेड़ों को हटाने की शुरुआत की।
कीकर के नीचे कोई पेड़ तो होना अलग बात है,लेकिन उसके नीचे घास भी नहीं उगती है। इससे पर्यावरण को भी नुकसान होता है। अरावली के आसपास के रहने वाले किसान कहते हैं कि पहले वो अपने पशुओं को पहाड़ में चरने के लिए छोड़ देते थे। उनके पशु वहां घास चरकर पल जाते थे। जब से कीकर के पेड़ लगाए हैं, पहाड़ों में घास भी नष्ट हो गई है। इसके नीचे दूसरे पेड़ भी खत्म हो गए है।
विलायती बबूल के सडक़ किनारे लगने से इसकी झाडिय़ां सडक़ को घेर लेती हैं। इन झाडिय़ों के कारण कई बार सडक़ पर घुमाव पर सामने से आना वाला वाहन दिखाई नहीं देता जिससे दुर्घटना की संभवना बनी रहती है।
क्या है विलायती बबूल का इतिहास
वन विभाग ने अंग्रेजों के जमाने में भारत आए इजराइली बबूल की पौध को अरावली परियोजना में शामिल किया था। अरावली में आज इन्हीं पौधे बनी कंटीली झाडिय़ों की भरमार है। पहले राजस्थान में कुछ स्थानों पर इसका सीमित उपयोग था, लेकिन वर्ष 1999 में जब यूरोपियन देशों की मदद से अरावली परियोजना शुरू की तब राजस्थान से लाकर इजराइली बबूल के पौधे को इंट्रोड्यूस किया गया। यहां गांव-देहात में इसे विलायती कीकर भी कहा जाता है।
अरावली पर्वतमाला प्राचीनतम पर्वतमाला है। इसका अधिकांश भाग राजस्थान में है। अरावली का सर्वोच्च पर्वत शिखर राजस्थान में माउंट आबू के पास गुरुशिखर (1722 /1727 मी.) है। राष्ट्रपति भवन भी अरावली के क्षेत्र में बसा हुआ है। अवैध खनन के कारण अरावली नंगी हो गई थी। बाद में यूरोपियन देशों की मदद से तापमान को संतुलित रखने का ध्येय लेकर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग समय पर पौधरोपण हुआ।
वन विभाग अधिकारियों का कहना है कि वन विभाग की ओर से अब तक करीब 159 हेक्टेयर जमीन से विलायती बबूल हटाया गया है। विलायती बबूल को हटाने में करीब 3 साल का समय लगता है। इसकी मॉनिटरिंग की जाती है। विलायती बबूल को हटाने की मुहिम अलवर जिले में शुरू की गई है, जिसके तहत वन विभाग विलायती बबूल के पेड़ों को हटाने का काम कर रहा है और आगे भी यह प्रक्रिया जारी रहेगी।