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अलवर के इन इलाकों का विदेशों तक है नाम, लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी नहीं है रोडवेज बस सेवा

अलवर के इन इलाकों में आजादी के 70 साल बाद भी सीधी बस सेवा नहीं है। जबकि इन इलाकों का विदेशों तक मांग है।

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अलवर

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Prem Pathak

Mar 22, 2018

NO DIRECT BUS SERVICE IN THESE REGIONS OF ALWAR

औद्योगिक इकाइयों एवं जापानी जोन के लिए मशहूर नीमराणा हो या कृषि उपज मंडी से पहचाना जाने वाला खैरथल। जिले के इन कस्बों ने देश-विदेश तक अलवर की पहचान तो बना दी, लेकिन अपने ही घर में इनका अपमान हो रहा है। स्थिति ये है कि आजादी के 70 साल बाद भी ये कस्बे रोडवेज की सीधी बस सेवा से नहीं जुड़ सके हैं। ऐसा नहीं है कि इन कस्बों में कोई आता-जाता नहीं है। अलवर शहर से ही रोजाना बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में नीमराणा जाते हैं। वहीं, जिन्सों की खरीद-फरोख्त के लिए खैरथलवासियों का अलवर और अलवरवासियों का खैरथल आना-जाना रहता है। इसके बावजूद इन लोगों को बसों के नाम पर धक्के खाने पड़ते हैं। दरअसल, अलवर की आर्थिक धुरी बने इन कस्बों के लिए रोडवेज की सीधी बस नहीं है। नीमराणा जाने के लिए पहले बहरोड़ और वहां से नीमराणा की बस पकडऩी पड़ती है। ऐसे ही खैरथल जाने के लिए पहले किशनगढ़बास और वहां से डग्गेमार व प्राइवेट वाहनों से खैरथल जाना पड़ता है।

जिस गांव ने विधायक दिया, उसके लिए भी नहीं बस

रोडवेज प्रशासन ने छोटे-छोटे जनप्रतिनिधियों के कहने मात्र से उनके गांव तक बसें चला दी। वहीं, एक गांव ऐसा है, जिसने अलवर को विधायक दिया, लेकिन इस गांव के लोग अब तक रोडवेज सेवा से वंचित है। हम बात कर रहे हैं गण्डूरा गांव की। विधायक के इस गांव में परिवहन सेवा के हालात ये हैं कि बड़ौदामेव के बाद गांव के लोगों को घर तक पहुंचने के लिए जुगाड़ के साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। जबकि इस गांव से रोजाना बड़ी संख्या में लोग अलवर आते-जाते हैं।

कलक्टर गए, बस भी गई

कस्बा हरसौरा की कहानी भी गण्डूरा जैसी है। हरसौरा में अलवर के एक पूर्व कलक्टर की रिश्तेदारी है। रोडवेज प्रशासन ने कलक्टर को खुश करने के लिए हरसौरा तक सीधी बस चला दी। कलक्टर जब तक अलवर रहे, रोडवेज बस हरसौरा तक गई। कलक्टर के जाते ही रोडवेज बस भी हट गई।

लोकल रूटों को बिसराया, बड़े रूटों को अपनाया

रोडवेज ने गांव-गांव, कस्बा-कस्बा को बस सेवा से जोडऩे के लिए प्रत्येक जिले में डिपो तो स्थापित कर दिए, लेकिन रोडवेज अधिकारियों ने बसों को आय का साधन बना लोकल रूटों को बिसरा बड़े रूटों को अपना लिया। इसका नतीजा ये हुआ कि बड़े रूटों पर जो गांव आए, उनके लिए तो बसों की भरमार हो गई और जो इन रूटों पर नहीं आए, वे बसों के लिए तरस गए। अलवर की बात करें तो यहां रोडवेज के मत्स्य नगर, अलवर व तिजारा तीन डिपो हैं। इन डिपो में रोडवेज की लगभग 300 बसें हैं। इसके बावजूद नीमराणा, खैरथल सहित जिले के कई बड़े कस्बों के लिए कोई बस नही है।