
बानसूर, बहरोड़, मुंडावर और कोटकासिम रेड अलर्ट जोन में
अतिक्रमण, अवैध बोरिंग और कम बारिश से अस्तित्व पर संकट
रूपारेल और साहबी नदियों का अस्तित्व गहरे संकट में है। हालात यह हैं कि प्रशासन की बेरुखी और अनियोजित विकास ने इन नदियों में पानी की आवक को लगभग खत्म कर दिया है। कभी सालभर बहने वाली ये नदियां आज सूखी धाराओं में बदलती जा रही हैं। विशेषज्ञों की मानें तो यदि हालात ऐसे ही बने रहे, तो आने वाले वर्षों में इन नदियों का नामोनिशान तक मिट सकता है। इस सीजन में रूपारेल नदी का बहाव घाट बांध तक एक बार रहा और साहबी नदी में केवल कुछ हिस्सों में ही पानी की आवक हुई।
अतिक्रमण और कम बारिश बनी सबसे बड़ी बाधा
नदियों की धाराओं पर जगह-जगह अतिक्रमण हो चुका है। कई स्थानों पर कच्चे-पक्के निर्माणों ने जल धारा को रोक दिया है, जिससे बरसात का पानी आगे बढ़ ही नहीं पाता। इसके साथ ही पिछले कुछ वर्षों से मानसून की कमजोर पकड़ ने भी पानी की मात्रा में भारी कमी ला दी है। बारिश कम होने से कैचमेंट एरिया भर नहीं पा रहा और प्राकृतिक जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। शोध में पाया गया कि 1990 से 1996 तक अच्छी खासी बारिश दर्ज हुई, लेकिन इसके बाद लगातार गिरावट रही।
अवैध बोरिंग से बेतहाशा दोहन, रिचार्ज की राह बंद
आसपास के क्षेत्रों में अवैध बोरवेलों की भरमार है। गहराई तक खींचे जा रहे पानी से भूमिगत जल लगातार गिर रहा है। रिचार्ज कम होने से नदियों की धारा तक पानी पहुंचना लगभग बंद हो चुका है। बानसूर, बहरोड़, मुंडावर और कोटकासिम के हालात तो इतने खराब हैं कि इन्हें पानी की दृष्टि से रेड अलर्ट जोन में दर्ज किया गया है।
जयसमंद बांध की स्थिति भी गंभीर
भूजल को रिचार्ज करने वाले जयसमंद बांध का हाल भी संतोषजनक नहीं है। पानी की पर्याप्त आवक नहीं होने के कारण कई बार यह अपनी क्षमता तक नहीं भर पाता। यदि बांध में नियमित रूप से पानी नहीं पहुंचेगा तो नीचे की ओर बहने वाली नदियां स्वतः ही सूखने लगेंगी। हालांकि पिछले दो रेनी सीजन से बांध में पानी की आवक हुई, लेकिन मानसून विदा होने के साथ ही इसकी जलराशि सूख जाती है। बताया जा रहा है कि बांध के आसपास लगे बोरिंग, वाटरपार्क और उद्योग पानी का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं।
तेजी से बढ़ती जनसंख्या और खेती के लिए चुनौती
अलवर में पिछले कई दशकों से जनसंख्या घनत्व में वृद्धि हुई है। इसके साथ ही अलवर की अधिकांश जनसंख्या खेती पर निर्भर है। पानी का ऐसे ही अत्यधिक दोहन होता रहा तो जनसंख्या और खेती के लिए भूजल जल्द ही चुनौती बन जाएगा।
रूपारेल और साहबी नदी का चल रहा ड्रोन सर्वे
रूपारेल और साहबी नदियों का ड्रोन सर्वे किया जा रहा है। नदी के बहाव क्षेत्र में आने वाले अतिक्रमण, अवैध खनन और पक्के निर्माण का सर्वे में पता लेगगा। उसके बाद विभाग इन सभी जगहों का सत्यापन करके आगे की कार्रवाई जारी रखेगा।
कला कॉलेज की छात्रा दिव्या चौहान ने किया शोध
कला कॉलेज की छात्रा दिव्या चौहान ने साहबी नदी पर शोध किया है। दिव्या ने बताया कि बानसूर, बहरोड़, मुंडावर और कोटकासिम ब्लॉक साहबी नदी नहीं बहने से सबसे ज्यादा प्रभावित है। इन क्षेत्रों में भूजल 100 मीटर से नीचे पहुंच चुका है। इनको रेड अलर्ट जोन घोषित किया जा सकता है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट अनुसार कई ब्लाकों को ओवर एक्सप्लॉइटेड कैटेगरी में शामिल किया गया है यानि जितना पानी रिचार्ज हो रहा है, उससे कहीे ज्यादा तेजी से पानी निकाला जा रहा है। रिचार्ज संरचनाएं बढ़ाने, अतिक्रमण हटाने और बारिश के पानी को रोकने के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाने की जरूरत है। दिव्या वर्तमान में अजमेर के सोफिया कॉलेज में कार्यरत है।
Published on:
15 Dec 2025 05:02 pm
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