रकबर का कोई परिजन नहीं आया कोर्ट में° अलवर एडीजे संख्या-एक कोर्ट ने सुनाया फैसला
अलवर. रकबर मॉब lynching मामले में गुरुवार को अलवर एडीजे संख्या-एक कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। प्रकरण में सरकार की ओर से नियुक्त विशिष्ट लोक अभियोजकों ने न्यायालय के फैसले को सर्वोपरि माना है, लेकिन दंडादेश से असंतुष्ट हैं। उनका कहना है कि इस गंभीर प्रकरण में अभियुक्तों को कम सजा दी गई है। उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी जानी चाहिए थी। न्यायालय के इस दंडादेश को हाईकोर्ट में चुनौती देने के लिए सरकार को लिखा जाएगा। वहीं, मुल्जिम पक्ष के वकील भी इस दंडादेश से असंतुष्ट नजर आए। उनका कहना है कि सभी मुल्जिमों को बरी किया जाना चाहिए था।
आजीवन कारावास होना चाहिए था
&रकबर मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग प्रकरण में न्यायलाय की ओर से मुल्जिमों को आईपीसी की धारा 304-ए में सजा दी गई है। इससे वे संतुष्ट नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के हिसाबस से मुल्जिमों को आजीवन कारावास की सजा होनी चाहिए थी। वहीं, धारा 304-ए में भी अभियुक्तों को कम सजा दी गई है। मुल्जिम नवल किशोर को भी बरी होने लायक नहीं था। इसमें मेरा सरकार को सुझाव रहेगा कि वे रकबर मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग प्रकरण में हाईकोर्ट में अपील करे।
- नासिर अली नकवी, स्पेशल पीपी एवं वरिष्ठ अधिवक्ता,जयपुर
मुल्जिमों को बरी करना चाहिए था
&रकबर हत्याकांड में कोर्ट ने एएसआई मोहन ङ्क्षसह लापरवाही मानी है। न्यायिक जांच में भी पुलिस को दोषी माना गया था। कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले से वे संतुष्ट नहीं हैं। प्रकरण में सभी मुल्जिमों को बरी किया जाना चाहिए था और दोषी पुलिसकर्मियों को सजा दी जानी चाहिए थी।
- हेमराज गुप्ता, मुल्जिम पक्ष के वकील।
सजा से संतुष्ट नहीं
&रकबर मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग प्रकरण में न्यायालय द्वारा मुल्जिमों को दोषी मानना सही है, लेकिन न्यायालय की ओर से दी गई सजा से वे संतुष्ट नहीं है। क्योंकि यह एक प्री प्लांड मर्डर था। ऐसी स्थिति में न्यायालय का निर्णय शिरोधार्य है, लेकिन हम निर्णय में जो दंडादेश किया गया है इससे हम संतुष्ट नहीं है। इस फैसले की प्रति लेकर उच्च न्यायालय में अपील के लिए लिखा जाएगा।
- अशोक कुमार शर्मा,
स्पेशल पीपी एवं वरिष्ठ अधिवक्ता, अलवर।
कोर्ट में पहले ही पहुंच गए थे मुल्जिम
मुल्जिम धर्मेन्द्र, परमजीत, नरेश, विजय और नवल किशोर सभी फैसले से काफी कई घंटे पहले कोर्ट पहुंच गए थे। सभी कोर्ट में इधर-उधर घूम रहे थे। न्यायालय ने नवल किशोर को बरी करते हुए शेष चार मुल्जिमों को दोषी माना। इसके बाद पुलिस ने मुल्जिम धर्मेन्द्र, परमजीत, नरेश और विजय को अभिरक्षा में ले लिया था। कोर्ट के सजा सुनाए जाने के बाद किसी भी मुल्जिम के चेहरे पर मायूसी नहीं दिखी।
जिन काली-धोली पीछे मचा था बवाल, उनकी भी हो चुकी है मौत
अलवर. 20 जुलाई 2018...रात 12 बजे। रकबर और उसका साथी असलम दो गायों को लेकर रामगढ़ के ललावंडी गांव से होते हुए पैदल-पैदल हरियाणा जा रहे थे। गोतस्करी के शक में ग्रामीणों ने उन्हें पकड़ लिया और मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग की घटना को अंजाम दे डाला। जिन काली-धोली गायों के पीछे रकबर मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग की घटना का अंजाम दिया गया था, उन दोनों ही गायों की कई साल पहले खामोश मौत हो चुकी है। दरअसल, गोतस्करों से बरामद काली और धोली गाय को पुलिस ने बगड़ तिराहा स्थित सुधासागर गोशाला में छुड़वा दिया था।
रकबर का कोई परिजन नहीं आया कोर्ट में
रकबर मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग मामले में फैसले के दौरान अलवर कोर्ट में मृतक रकबर को कोई भी परिजन नहीं आया। मृतक रकबर के पिता सुलेमान की करीब दो साल पहले बीमारी से मौत हो गई थी। रकबर की पत्नी असमीना की भी इस घटना के कुछ माह बाद हादसे में रीढ़ की हड्डी टूट गई थी। उल्लेखनीय है कि मृतक रकबर के 7 बच्चें हैं। जिनमें तीन पुत्र और चार पुत्रियां हैं।
मामले में पांच साल चर्चा में रहा अलवर
रामगढ़ के ललावंडी गांव में हुइ रकबर मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग की घटना ने देश-दुनिया को हिलाकर रख दिया था। 20 जुलाई 2018 को हुई रकबर मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग मामले में 25 मई 2023 को कोर्ट का फैसला आया। इन करीब पांच सालों में अलवर रकबर मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग के कारण देशभर में चर्चित रहा।
केस ट्रांसफर के लिए याचिका भी लगाईमृतक रकबर के परिजनों ने जिला एवं सेशन न्यायालय में याचिका लगाई गई थी, जिसमें केस को अलवर से ट्रांसफर करने की मांग की गई, लेकिन न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद केस अलवर एडीजे संख्या-एक कोर्ट में चला। प्रशासन ने यह मामला राज्य सरकार के गृह व विधि विभाग को भेजा था। बाद में राज्य सरकार ने इसमें हाईकोर्ट जयपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता नासिर अली नकवी और अलवर के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार शर्मा को पैरवी के लिए नियुक्त किया था।