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अलवर। मेहनत, हुनर और नवाचार एक साथ मिल जाएं, तो खेती भी उद्यम बन जाती है। धरती सोना उगलने लगती है। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं रैणी क्षेत्र के किसान दंपती रामेश्वर दयाल यादव और उनकी पत्नी श्याम देवी। इस दंपती ने परंपरागत खेती के साथ मधुमक्खी पालन को अपनाकर न सिर्फ अपनी आय बढ़ाई, बल्कि गांव के युवाओं के लिए नई राह भी खोली है। इन्होंने अपनी शुरुआत महज 12 बॉक्सों से की। आज इनके पास 400 से अधिक मधुमक्खी बॉक्स हैं। यह उद्यम इन्हें प्रतिवर्ष 5 से 6 लाख रुपए की स्थायी आय दे रहा है। यह दंपती सीधे कंपनियों को शहद बेच रहा है। किसी दलाल का सहारा नहीं ले रहा।
रामेश्वर दयाल यादव ने बताया कि एक बॉक्स से औसतन 15-20 किलो शहद मिलता है। सीजन में करीब 60 क्विंटल शहद तैयार होता है, जिसे 145 रुपए प्रति किलो की दर से कंपनियां सीधे खरीद लेती हैं। सीधी बिक्री से लागत घटती है और लाभ बढ़ता है। जनवरी से मई के बीच स्थानीय क्षेत्र में फूलों की कमी रहती है। ऐसे में शहद उत्पादन बनाए रखने के लिए यह दंपती अपने बॉक्स हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में ले जाते हैं, जहां प्रचुर मात्रा फूल में मिलते हैं। करीब पांच महीने घर से बाहर रहकर वे उत्पादन जारी रहते हैं। जून के बाद बॉक्स वापस अलवर लाए जाते हैं।
पिछले 20-22 वर्षों से पूरा परिवार इसी कार्य से जुड़ा है। खेती के साथ मधुमक्खी पालन ने उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है। आज यह दंपती गांव में प्रेरणा का केंद्र बन चुका है। कई युवा इनसे सीख लेकर बॉक्स खरीद रहे हैं और स्वरोजगार की राह पकड़ रहे हैं।
Updated on:
29 Dec 2025 02:41 pm
Published on:
29 Dec 2025 02:37 pm
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