
अलवर. मौजूदा सरकार के चार साल में जनता के चार बड़े काम अभी तक अधूरे हैं। आगे भी पूरा होने की उम्मीद कम है। एक साल बाद होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों मंे फिर नेता इन्हीं मुद्दों को घुमा फिराकर जनता के बीच आएंगे। पहले की तरह वादे भी होंगे। बकायदा घोषणा पत्र में शामिल भी किए जाएंगे। सिर्फ इसलिए कि जनता के वोट लिए जा सकें। ये चारों में जरूरतें जिले की 40 लाख की आबादी से जुड़ी हुई हैं।
राज्य सरकार के कार्यकाल के चार साल पूरे होने जा रहे हैं। जल्दी ही इस सरकार का आखिरी बजट भी आने वाला है। एेसे में आपको एक बार पिछले चुनावों के समय जनता से किए गए वादे और अब तक रहे अधूरे बड़े विकास के कार्यों की ओर लेकर जाने की जरूरत है। ताकि आप समय पर वोट मांगने के लिए आने वाले नेताओं से सवाल जवाब कर सकें।
1. मत्स्य विश्वविद्यालय धरातल पर नहीं आया
अलवर का मत्स्य विश्वविद्यालय खुद के स्वरूप में नहीं आया है। जहां विश्वविद्यालय खोला जाना है वहां सिर्फ आधी अधूरी चार दीवारी हो सकी है। कला महाविद्यालय के बालिका छात्रावास भवन में चल रहा यह विश्विद्यालय भौतिक व मानवीय संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। कला कॉलेज के परिसर में छोटे-छोटे निजी विश्वविद्यालयों की तरह चल रहा है। विश्वविद्यालय की सौगात सिर्फ कागजों में मिली है। पिछली सरकार विश्वविद्यालय की घोषणा करके गई। कुछ बजट जारी किया। इस सरकार ने भी कुछ करोड़ रुपया बजट दिया। जिसमें चारदीवारी के अलावा कोई काम नहीं हो सका। हर साल कॉलेज में आने वाले हजारों विद्यार्थियों के सपने अधूरे हैं। उच्च शिक्षा के लिए दूर के विश्वविद्यालय व कॉलेजों में जाना पड़ रहा है।
2. मेडिकल कॉलेज मिला न स्वास्थ सेवा बेहतर हुई
अलवर जिले के लाखों लोगों के साथ स्वास्थ्य सेवाओं में भेदभाव हो रहा है। यहां मेडिकल कॉलेजों की तरह स्वास्थ्य सेवाओं में कोई विस्तार नहीं हो सका है। ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज बनाने पर 850 करोड़ रुपया खर्च कर दिया। लेकिन सरकार उसे चालू नहीं कर पा रही है। यही नहीं दूसरे जिलों की तरह अलवर में भी राज्य सरकार का मेडिकल कॉलेज खुलना था। जिसकी अभी तक नींव भी नहीं खुद सकी है। जबकि सरकार सालों से दावे करती आ रही है कि जल्दी मेडिकल कॉलेज बन जाएगा। यहां न मेडिकल कॉलेज बना न ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज चालू हो
सका है।
3. चम्बल के पानी का वादा सिर्फ जुबां पर
पूरा अलवर जिला डार्क जोन में जा चुका है। पानी पाताल में पहुंच गया। पीने को भी नहीं मिल रहा है। चम्बल का पानी लाने के दो दशक से वादे हो रहे हैं। पिछली सरकार के समय करीब पांच हजार करोड़ रुपए की डीपीआर बनाई गई। लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हुआ। इन चार सालों में चम्बल के पानी पर चर्चा ही नहीं हुई। जबकि भू-जल और नीचे चला गया। गर्मियों मंे जनता पीने के पानी को तरस जाती है। जब भी सरकार के मंत्री या जनप्रतिनिधियों से इस बारे में सवाल किए तो एक ही जवाब मिला कि सरकार के स्तर पर विचार हो रहा है। जल्दी कोई निर्णय किया जाएगा।
4. 969 करोड़ की सडक़ें कब बनेंगी ?
कई साल से अलवर जिले में एनसीआर के जरिए 696 करोड़ रुपए की सडक़ें बनाने का ढिंढोरा तो खूब पीटा जा चुका है। लेकिन सडक़ बनाने का कार्य शुरू भी नहीं हो सका है। पिछली सरकार के समय भी एनसीआर से सडक़ें बनाने के किए वादे अधूरे रह गए। मौजूदा सरकार के आने के बाद भी अलवर जिले में एनसीआर के बजट से बनने वाली सडक़ों का कार्य अभी तक शुरू नहीं हो सका है। हालांकि सरकार के मंत्री व जनप्रतिनिधि बराबर दावा कर रहे हैं कि डीपीआर बन चुकी है। जल्दी सडक़ों का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। अलवर शहर ही नहीं जिले भर में कस्बे और गांवों को जोडऩे वाली सुडक़ों को बुरा हाल है।
Published on:
13 Dec 2017 02:56 pm
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