
स्वामी विवेकानंद ने अलवरवासियों को दिया था अध्यात्म का संदेश,
अलवर शहर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के समीप ही उनकी स्मृति में स्वामी विवेकानंद पैनोरमा और विवेकानंद चौक भी बना हुआ है। स्वामी जी पहली बार फरवरी 1891 में और दुसरी बार 1897 में अलवर आए।
इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने बताया कि स्वामी विवेकानंद देश भ्रमण पर निकले तो फरवरी 1891 में अलवर आए थे , उस समय वो संयासी थे । स्वामी जी रेल से यात्रा करते हुए अलवर स्टेशन पर आए और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य कार्यालय में पहुंचें तो स्वामी जी ने बंगाली में ठहरने की इच्छा की तो बंगाली डा. गुरु चरण ने उन्हें अपने घर पर ठहराया और यहां पर धर्म चर्चा व प्रार्थना सभा होने लगी । स्वामी जी की मित्र मंडली बन गई। उनकी टोली शाम को आसपास में भजन कीर्तन करते हुए भ्रमण करती। आज भी वह कमरा बना हुआ है जहां वो साधना करते थे। अब यह स्थान विवेकानंद पनोरमा के रूप में जाना जाता है।
इस दौरान एक माह तक अलवर में निवास किया। मालाखेडा बाजार में बाहर टीले पर उनके प्रवचन होते थे , वहां आज स्वामी जी की मूर्ति लगाई गई है। यह स्थान विवेकानंद चौक के नाम से जाना जाता है। अलवर प्रवास के दौरान तत्कालीन रेजिडेंट के हेड कर्ल्क लाला गोविंद सहाय ने उन्हें अपने घर पर निमंत्रण दिया जिसे स्वामी जी ने स्वीकार किया। यह स्थान स्वामी जी को बहुत पसंद आया । इस घर में आज भी वह कमरा सुरक्षित है जहां स्वामी ने प्रवास किया था। इस दौरान महाराजा जयसिंह भी वेष बदलकर उनके प्रवचन सुनने पहुंचें तो स्वामी जी ने उनको भी मूर्ति पूजा का महत्व समझाया।
इतिहासकार गोयल ने बताया कि शहर से किला के पीछे भतृर्हरी और सरिस्का होते हुए स्वामी जी खेतडी गए और खेतडी के महाराजा अजीत सिंह उनसे बडे प्रभावित हुए और उन्होंने स्वामी जी को धर्मसभा में जाने का प्रबंध किया। इसके बाद स्वामी विवेकानंद शिकागो पहुंचें और 11 सितंबर 1893 में जो प्रवचन दिया उसके बाद वे संयासी से स्वामी बन गए।
Published on:
18 Nov 2022 09:36 pm
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