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शिक्षक दिवस : पहले से काफी बदल गया है शिक्षक व शिष्य का रिश्ता, बता रहे हैं सेवानिवृत शिक्षक राधेश्याम शर्मां

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अलवर

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Hiren Joshi

Sep 05, 2018

Teachers Day 2018 : Teacher And Student Relation In Old Days

शिक्षक दिवस : पहले से काफी बदल गया है शिक्षक व शिष्य का रिश्ता, बता रहे हैं सेवानिवृत शिक्षक राधेश्याम शर्मां

पहले शिक्षा देने वाले को गुरु माना जाता था, जिस शिष्य सदैव अपने गुरु का सम्मान करता था, लेकिन आज सम्मान की भावना खत्म हो गई क्योंकि आज की शिक्षा व्यवसायिक हो गई है। शिक्षक केवल यहां नौकरी के लिए आता है , इसी तरह से शिष्य भी पहले जैसे नहीं रहे, शिष्य केवल वो शिक्षा लेना चाहते हैं जो उन्हें नौकरी दिला सके। उन्हें संस्कार , नैतिकता वाली शिक्षा की आवश्यकता नहीं है। शिक्षक ओर शिष्य भौतिकवादी हो गए हैं सभी तरह की सुख सुविधाएं लेकर आगे बढऩा चाहिते हैं।

अगर कुछ मर्तबा चाहे तो, मिटा दें अपनी हस्ती को, कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलजार होता है यानि शिक्षक वही होता है जो अपनी हस्ती को बनाते हुए शिष्य को भी आगे बढ़ाता है। 1945 में मैं जब यशवंत स्कूल में 8 वीं पास करने के बाद कुछ ही दिनों में शादी हो गई। इसके बाद सरकारी नौकरी लग गई। यह उस समय के शिक्षकों का ही प्रभाव था कि मैंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया और बीए राजर्षि कॉलेज से पास किया। जो रास्ता शिक्षक यानि गुरु ने तय किया वो ही रास्ता मैंने पकड़ लिया और कभी पीछे मुडकऱ नहीं देखा। कोचिंग सेंटरों ने शिक्षा का जो व्यवसायीकरण किया है उससे शिक्षा और शिक्षक दोनों का महत्व गिरा है क्योंकि यहां पर संस्कारों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। जो शिक्षक मन में तेरा मेरा का भाव रखता है वह कभी सफल नहीं हो सकता । शिक्षक वही होता है जो सदैव वसुधव कुटुंबकम की भावना रखता हो।

मत्स्य प्रदेश के प्रथम प्रधानमंत्री रहे बाबू शोभाराम हमारे पड़ोसी थे। जब पिता से मिलने आते तो हमें पढ़ाते थे , वो हमारे शिक्षक नहीं थे , लेकिन जो संस्कार व नैतिकता की बातें उन्होंने सिखाई वो आज तक किसी शिक्षक ने नहीं सिखाई। आज स्कूलों के विद्यार्थी अपने राह भटक रहे हैं क्योंकि उन्हें सही राह दिखाने वाले शिक्षक नहीं मिल रहे हैं।