भर्ती अस्पताल में लेकिन मरीज बच्चों को बाहर लेकर घूम रहे
पत्रिका रिपोर्टर को मरीज के परिजनों ने बताया कि हमारे बेड पर तीन बच्चे भर्ती है। तीनों तो बेड पर सो भी नहीं सकते। एेसे में दो बच्चों के अभिभावकों को बच्चों को लेकर बाहर बैठना पड़ता हैं। इंजेक्शन लगवाने के समय अभिभावक बच्चों को लेकर आ जाते है। मरीज के साथ आए परिजनों ने बताया कि यहां स्टूल तक बैठने को नहीं है।
तीस प्रतिशत मरीज आ रहे अन्य जिलों व राज्य से
राजकीय शिशु चिकित्सालय का हाल यह है कि यहां ४० बेड हैं जिनमें किसी पर २ और किसी पर ३ मरीज भर्ती है। हालात यह है कि यहां आने वाले मरीज अधिकतर समीपवर्ती जिलों और राज्यों से आ रहे हैं। अन्य जिलों से आने वाले मरीजों की संख्या ३० प्रतिशत तक पहुंच गई है। अस्पताल प्रशासन की सांसे फूलने लगी हैं। यदि इस तरह मरीजों की संख्या बढ़ती रही तो उनका इलाज करना मुश्किल हो सकता है।
एक बेड पर तीन मरीज भर्ती, लाचार परिजन
शिशु चिकित्सालय में पत्रिका टीम ने जाकर देखा तो वार्ड में कई बेडों पर तीन-तीन मरीज भर्ती थे। एेसे में बच्चों की उम्र अधिक होने पर बच्चों एवं अभिभावक को परेशानी झेलनी पड़ रही है।
ब्लॉक स्तर पर पूरी सुविधाएं फिर भी भर्ती नहीं कर रहे
अलवर जिले के सभी ब्लॉक स्तरों पर बने राजकीय अस्पतालों में शिशु चिकित्सक हैं लेकिन वहां मरीज भर्ती नहीं किए जा रहे हैं। हालात यह है कि इसका सारा भार अलवर जिला मुख्यालय के अस्पतालों पर पड़ रहा है। इस बारे में पिछले दिनों स्वास्थ्य सचिव सिद्धार्थ महाजन अलवर आए तो उन्होंने चिकित्सा अधिकारियों को डांट लगाई कि जब ब्लॉक स्तर पर इलाज की पूरी सुविधाएं हैं तो वहां मरीजों को भर्ती क्यों नहीं किया जा रहा है लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकला है।