
पत्रिका में पढि़ए जिले के हनुमान मन्दिरों की कहानी, जो देशभर के श्रदालुओं की आस्था के है केंद्र
अलवर. वैसे तो देशभर में हनुमानजी की अराधना होती है लेकिन यह कहा जाए की अलवर जिले में सबसे ज्यादा तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। इन प्रसिद्ध मंदिरों में मंगलवार और शनिवार को दर्शन के लिए हजारों भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यहां हजारों किलोमीटर दूर से भी भक्त घूमने और हनुमान जी की दर्शन करने के लिए आते हैं। आज इस लेख में हम आपको जिले के ऐसे 4 सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध हनुमान मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां आप भी दर्शन के लिए जा सकते हैं। तो आइए जानते हैं।
पांडुपोल: भीम का अहंकार तोड़ा
सरिस्का कोर एरिया में स्थित पांडुपोल हनुमान मंदिर अपनी खास पहचान के लिए दुनिया में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के समय भीम ने गधा से पहाड़ तोडकऱ रास्ता निकाला था। भीम ने अपनी गदा से ऐसा प्रहार किया कि पहाड़ में आरपार छेद निकल गया। पहाड़ में बना यह दरवाजा ही पांडुपोल के नाम से विख्यात है। जो प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थलों में गिना जाता है। साथ ही लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है।
चक्रधारी हनुमान मंदिर: हनुमान प्रतिमा के हाथ में है सुदर्शन चक्र, नहीं चढ़ाया जाता चोला
बाला किला क्षेत्र स्थित चक्रधारी हनुमान मंदिर विराजित हनुमानजी की प्रतिमा को लेकर मान्यता है कि यहां चेतन प्रतिमा विराजित है। बताया जाता है कि यह 800 साल पुराना रियासतकालीन मंदिर है। इस मंदिर में हनुमान प्रतिमा के हाथ में सुदर्शन चक्र है। इस कारण ही यह मंदिर चक्रधारी मंदिर कहलाता है। अलवर जिला मुख्यालय से करीब 3 किलोमीटर दूरी पर सरिस्का की बफर रेंज की पहाडिय़ों में यह मंदिर स्थित है। यहां शनिवार और मंगलवार को भक्तों का तांता लगा रहता है।
सिद्ध पीठ हनुमान मंदिर: दर्शन करने से पूरी होती है भक्तों की मनोकामना
अलवर शहर से करीब 57 किलोमीटर दूरी पर बर्डोद स्थित सिद्ध पीठ हनुमान मन्दिर है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि अलवर रियासत के तत्कालीन राजा जय सिंहद्वारा सिद्ध पीठ हनुमान मंदिर में बालाजी महाराज की मूर्ति विराजमान करवाई गई थी। जो आज भी हनुमान जी की मूर्ति के साथ ही विराजमान है। जिनकी आज भी पूजा की जाती है। कहा जाता था कि अलवर के तत्कालीन राजा यहां पर पूजा अर्चना के लिए आते थे। यहां पर नागा साधु धर्मगिरी महाराज ने 1988 मेें तप-यज्ञ व भजन किया। इसके बाद जऩ सहयोग से य़ह मंदिर बनकर तैयार हुआ। जिसके बाद इस मंदिर की मान्यता इतनी बढ़ गई कि अलवर जिले ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों के भी श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
रामायणी हनुमान मंदिर : यहां हनुमानजी को नहीं चढ़ाया जाता चोला
अलवर शहर के प्रतापबंध रोड पर मिट्टी के टीले पर बना रामायणी हनुमान मंदिर है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि हनुमानजी महाराज की प्रतिमा के चोला नहीं चढ़ाया जाता हैए शृंगार किया जाता है। यहां हनुमानजी की संगमरमर से निर्मित करीब 27 क्विंटल वजनी प्रतिमा रामायण पढ़ते हुए मुद्रा में विराजमान है। यह राजस्थान के दुर्लभ मंदिरों में भी शामिल है। सन् 2005 में जनसहयोग से इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। मंदिर में हनुमान जी महाराज के अलावा गोरखनाथ भैरवनाथ की भी प्रतिमा स्थापित है। मंदिर में प्रत्येक मंगलवार व शनिवार को संगीतयम सुंदरकांड के पाठ होते हैं। रामायण पढ़ते हुए हनुमानजी दुर्लभ प्रतिमा के दर्शनों के लिए देश विदेश के श्रद्धालु आते हैं।
Updated on:
22 Apr 2024 06:04 pm
Published on:
22 Apr 2024 06:01 pm
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