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गीता जयंती के बाद अब सरस्वती अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

locationअंबालाPublished: Jan 17, 2018 09:09:04 pm

सदियों पहले लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी को खोजने का श्रेय हरियाणा की मनोहरलाल सरकार को जाता है।

Manohar lal khattar

चंडीगढ़। सदियों पहले लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी को खोजने का श्रेय हरियाणा की मनोहरलाल सरकार को जाता है। हरियाणा सरकार द्वारा 18 जनवरी से प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय सरस्वती उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। हालही में गीता जयंती उत्सव में फजीहत के बाद भाजपा सरकार ने अब लोगों को धार्मिक रूप से साधने के लिए सरस्वती का दामन थाम लिया है।


यमुनानगर जिले के ऐतिहासिक तीर्थ स्थल कपाल मोचन के निकट आदि बद्री में करीब दो साल पहले लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के उदगम् स्थल होने का दावा किया गया। तभी से प्रदेश सरकार ने यमुनानगर जिले के गांव काठगढ़ व आसपास करोड़ों रुपए बजट के कई प्रोजैक्ट शुरू कर चुकी है।


हरियाणा सरकार की आस्था की पराकाष्ठा यह है कि यमुनानगर जिले के कस्बा मुस्तफाबाद का नाम बदलकर सरस्वती नगर कर दिया गया है। सरकारी दावे में हरियाणा में सरस्वती का 153 किमी लंबा प्रवाह क्षेत्र माना गया। इसे बहाने का मतलब है कि यह जमीन लोगों को खाली करनी पड़ेगी। सरस्वती को पुनर्जीवित करने के रास्ते में यह भी एक बड़ी चुनौती है। हालांकि इससे बड़ी चुनौती यह साबित करना भी होगा कि बरसाती पानी और यहां-वहां से पानी जुटाकर जो नदी तैयार की जाएगी उसे किस तरह ऋग्वेद वाली हिमालय से निकलने वाली विशालकाय सरस्वती नदी कहा जाए।


7 मई, 2015 को यमुनानगर जिले के मुगलांवाली गांव में सरस्वती के संभावित प्रवाह क्षेत्र में खुदाई का काम चल रहा था। तभी एक जगह छह फीट की गहराई पर मजदूरों को नमी वाली मिट्टी मिलनी शुरू हुई। फिर एक फीट और खोदने पर यहां पानी निकल आया। दिलचस्प बात यह है कि मुगलांवाली, काठगढ़ व आदि बद्री के आसपास रहने वाले हजारों ग्रामीणों को आज भी इस बात का यकीन नहीं है कि उनका गांव सरस्वती नदी का उदगम स्थल हो सकता है। सोम नदी के किनारे पर बसे करीब दो हजार की आबादी वाले गांव काठगढ़ (आदिबद्री) का दौरा करने पर यहां के करीब 75 वर्षीय राम प्रकाश ने बताया कि इस पूरे क्षेत्र में भूमिगत जलस्तर काफी उंचा है। जिसके चलते कहीं भी खुदाई करने पर पानी निकल जाता है।


सरपंच रामसरण इस बात को लेकर आशंकित हैं कि उनका गांव सरस्वती नदी का उदगम स्थल हो सकता है। इसी गांव के सरपंच रामसरण बताते हैं कि गांव की करीब 400 एकड़ पंचायती जमीन सैकड़ों वर्षों से मंदिर के नाम है। अब प्रदेश सरकार द्वारा इसी जमीन पर अपने प्रोजैक्ट शुरू किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां वन विभाग के विश्राम गृह को पर्यटन विभाग के नाम हस्तांत्रित करके विकसित किया जा रहा है। रामसरण भी इस बात को लेकर आशंकित नजर आए कि उनके गांव में सरस्वती नदी बह सकती है।


अधिकतर ग्रामीणों को दावा है कि जिस स्थान को हरियाणा सरकार सरस्वती नदी का उदगम स्थल बता रही है उससे कई गुणा अधिक पानी पहाड़ों में अक्सर टपकता रहता है। काठगढ़ ही नहीं बल्कि आसपास के गांव दुरलेड़ी, राणीपुर, रणजीतपुर आदि के ग्रामीण सरकार के इस प्रयास को राजनीति से जोडक़र देखते हुए बोलते हैं कि आस्था के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करके नदी के चिन्ह यमुनानगर, कुरूक्षेत्र, जींद व सिरसा आदि जिलों में तलाश किए गए जा रहे हैं।


क्या है सरकार की योजना
हरियाणा सरकार ने यमुनानगर जिले के गांव काठगढ़ स्थित आदि बद्री को सरस्वती नदी का उदग्म स्थल माना है। जिसके चलते यमुनानगर, कुरूक्षेत्र,जींद, कैथल से होते हुए सिरसा जिले के ओटू हेड तक प्रवाह मार्ग का सीमांकन करने के भी निर्देश दिए। सरस्वती धरोहर बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन प्रशांत भारद्वाज ग्रामीणों के दावे को पुख्ता करते हुए मानते हैं कि आदि बद्री के पास सोम्ब नदी पर बांध बनाकर एक बड़ी झील बनाई जाएगी,जिससे सरस्वती यानि (सरस का समागम) चरितार्थ हो जाएगा। इसके बनने से भूजल स्तर बढ़ेगा। सिंचाई के लिए भी सरस्वती नदी का पानी उपयोग में लिया जा सकेगा। दूसरी झील पिहोवा के निकट स्योंसर के वन क्षेत्र में बनाई जाएगी।

तीन दशक पहले तैयार हो गई थी सरस्वती की पटकथा
करीब तीन दशक पहले जब पुरातत्वविद डॉ.वीएस वाकणकर ने दावा किया था कि उन्होंने विलुप्त हो चुकी ‘सरस्वती’ नदी का रास्ता खोज लिया है। पद्मश्री से सम्मानित इस पुरातत्वविद का कहना था कि उसने नदी के उद्गम स्थल-आदि बद्री (हरियाणा) से लेकर कच्छ तक का वह प्रवाह क्षेत्र चिह्नित कर लिया है जहां हजारों साल पहले सरस्वती बहा करती थी। उसी साल फिर एक जत्था हरियाणा से शुरू हुए प्रवाह क्षेत्र की यात्रा करते हुए गुजरात के कच्छ तक पहुंचा था।

इस जत्थे में तत्काली संघ प्रचारक एवं वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर भी शामिल थे। इसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कुछ प्रचारक भी शामिल थे। तब किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि भविष्य में इन्हीं प्रचारकों में से एक के कंधे पर ‘सरस्वती’ नदी को ‘प्रवाहमान’ करने की मुख्य जिम्मेदारी आएगी।

संघ के एजेंडे और वाजपेयी के सपने को साकार कर रहे मनोहर
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सरस्वती नदी की खोज को लेकर हमेशा से उत्साहित रहा है। हरियाणा में 1999 के दौरान सरस्वती शोध संस्थान नाम से एक गैरसरकारी संस्था का गठन हुआ था और इसके अध्यक्ष दर्शन लाल जैन, राज्य में संघ के प्रमुख रह चुके हैं। इस संस्थान के अस्तित्व में आने के बाद से गैर-सरकारी स्तर पर सरस्वती पुनर्जीवन अभियान में काफी सक्रियता आ गई। अटल बिहारी बाजपेयी जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो 2002 में उनके कार्यकाल के दौरान संस्कृति मंत्री जगमोहन ने पहली बार केंद्र सरकार के स्तर पर सरस्वती खोज अभियान को हरी झंडी दिखाई थी।


अटल सरकार की योजना में संस्कृति मंत्री इस पैनल के प्रमुख थे और इसे 36 महीनों में सरस्वती खोज का काम पूरा करना था। दो साल बाद ही एनडीए सत्ता से बाहर हो गया और कांग्रेस सहित वामपंथी पार्टियां, जो इस परियोजना को पहले ही भगवा एजेंडा घोषित कर चुकी थीं,की यूपीए सरकार ने परियोजना रद्द कर दी।


उसके बाद वर्ष 2014 में जब हरियाणा में भाजपा की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री ने आर.एस.एस. लॉबी के निर्देशों पर फिर से सरस्वती नदी प्रोजैक्ट को शुरू कर दिया। वास्तव में यह परियोजना अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का ड्रीम प्रोजैक्ट रह चुकी है। जिस पर कांग्रेस और वामपंथियों ने ब्रेक लगाई थी। अब इसे अमली रूप देकर मुख्यमंत्री अपने संघर्ष के उन साथियों को भी तोहफा देने जा रहे हैं जिन्होंने तीन दशक पहले सरस्वती के लिए यात्रा की थी।

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