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परिवार से दूर अकेलेपन का दर्द लेकर वृद्ध आश्रम पहुंचे, यहां देहदान की घोषणा कर बन गए मिसाल

85 साल के ब्रह्मप्रकाश का परिवार छूटा, हौसला अभी भी बुलंद, अन्य वृद्धों ने भी साझा किए अपनों से मिले दर्द

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परिवार से दूर अकेलेपन का दर्द लेकर वृद्ध आश्रम पहुंचे, यहां देहदान की घोषणा कर बन गए मिसाल

परिवार से दूर अकेलेपन का दर्द लेकर वृद्ध आश्रम पहुंचे, यहां देहदान की घोषणा कर बन गए मिसाल

अंबिकापुर. शहर के वृद्धाश्रम में रहने वाले महिला-पुरूषों के लिए किसी प्रकार की बंदिश नहीं लेकिन सबके मन में कुछ न कुछ कसक है, जिससे वे घर छोड़ने के लिए विवश हुए। यहां रहने वाले कई वृद्ध अंबिकापुर शहर के आसपास के क्षेत्रों के हैं। कुछ वृद्ध ऐसे भी हैं, जिनका घर-परिवार यहां से कोसों दूर है। किसी ने अविवाहित पूरा जीवन बिता दिया, तो कोई भरा-पूरा परिवार होने के बाद भी दर-दर की ठोकर खा रहा है। आस्था निकुंज 'वृद्धाश्रमÓ में पनाह लिए ऐसे ही वृद्धों से चर्चा करने पर सबका अलग-अलग दर्द छलक कर सामने आया। वहीं इस आश्रम में रह रहे एक वृद्ध ने मेडिकल छात्रों के लिए देहदान की घोषणा कर समाज के लिए मिसाल पेश की है।

अमृतसर पंजाब के बटाला निवासी ब्रह्मप्रकाश 85 वर्ष की उम्र सीमा को पार करने के पड़ाव पर हैं। एक बेटा-एक बेटी, पत्नी सहित भरा-पूरा परिवार होने के बाद भी वे 19 वर्ष से भटकती जिंदगी का एक-एक पल काट रहे हैं। बेटे कमाने योग्य क्या हुए, पिता की खोज-खबर लेना भी उन्होंने उचित नहीं समझा। इसके बाद भी बिना किसी मलाल के अंबिकापुर के वृद्धाश्रम 'आस्था निकुंजÓ में उनके जीवन का एक-एक पल कट रहा है।
वहीं उम्र के इस पड़ाव में उन्होंने शहर के मेडिकल कॉलेज में 'देहदानÓ कर मिसाल पेश की है। ब्रह्मप्रकाश बताते हैं कि वर्ष 1965 में काम के सिलसिले में वे अंबिकापुर आए थे, उस समय बच्चे छोटे थे।


बच्चों के पालन-पोषण के लिए वे अपने गृहग्राम से दूर निकल लिए। मिस्त्री का काम करके वे अपना और परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। काफी लंबा समय होटलों में लोहे का चिमनी बनाने का काम ठेके में करते बीत गया। इस बीच उनका घर आना-जाना होता था। वर्ष 2004 से पूरी तरह से घर आना-जाना बंद हो गया। उनका पत्नी, बेटा-बहू, दो पोता, एक पोती और दो नाती सहित भरा-पूरा परिवार है लेकिन हालात ने सबसे अलग कर दिया। इसके पहले 2013-14 में वे अपने गृहग्राम बटाला गए थे। यहां 16 माह उन्होंने अपने दोस्त जगदीश सिंह के यहां बिताया। इसकी खबर दोस्त ने स्वजन को दी थी लेकिन कोई उनसे मिलने नहीं आया। इसके बाद वे अंबिकापुर की ओर पुन: रुख कर लिए। उनका कहना है कि अब किसी से मिलने का मन नहीं करता और न ही किसी से उन्हें कोई शिकायत है।


'मेरा शरीर बच्चों की पढ़ाई में काम आ जाएÓ
ब्रह्मप्रकाश ने बताया कि अंबिकापुर आने के बाद उन्हें आस्था निकुंज, वृद्धाश्रम में पनाह तो मिल गया लेकिन एक बात हमेशा खटकती थी कि मृत्यु के बाद नश्वर देह को कौन आग देगा। इस बीच समाचार पत्र पढ़ने के दौरान उनकी नजर शहर के एक बड़े शख्सियत द्वारा किए गए देहदान के खबर पर गई, फिर उन्होंने वृद्धाश्रम के अधीक्षक संजय ठाकुर के सामने अपने मन की बात रखते हुए कहा कि मेडिकल कॉलेज के बच्चों की पढ़ाई के काम उनका शरीर आ जाए तो अच्छा होगा, इसे अधीक्षक ने सहर्ष स्वीकार किया। इसके बाद उन्होंने अपने निर्णय को अंतिम रूप देते हुए वर्ष 2022 में देहदान की घोषणा की।

घर गिरने के बाद पकड़ी वृद्धाश्रम की डगर
राजपुर विकासखंड के ग्राम ककना में बच्चों को पढ़ाने वाले भवानी सिंह परिहार 65 वर्ष एक साल पहले ही वृद्धाश्रम में आए हैं। पिता की मौत के बाद वे अकेले पड़ गए। ग्राम पंचायत में आवेदन देकर दानपत्र में ली गई जमीन पर इंदिरा आवास का निर्माण उन्होंने कराया था। धीरे-धीरे भवन पूरी तरह से जर्जर हो गया था। वर्ष 2022 में भारी बारिश में घर गिर गया। इसके बाद सिर छिपाने के लिए जगह शेष नहीं बची।

दुलारी बेटी करती है पिता का अकेलापन दूर
लक्ष्मी नारायण साहू उम्र 90 वर्ष का पुत्र-पुत्री सहित भरा-पूरा परिवार है। बेटी का विवाह उन्होंने अंबिकापुर के मठपारा में किया। बेटा ओडिशा में काम करता है, जो एक दशक बीत गए पिता का हाल खबर लेने नहीं आया। बेटी का ससुराल घर छोटा होने के कारण वहां जगह की कमी है। बेटे ने भले ही उनसे दूरी बना लिया है लेकिन दुलारी बेटी अपने पिता से मिलने कभी-कभी पहुंच जाती है। इनकी हालत ऐसी नहीं कि वे चल-फिर सकें।


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