
अशोक विश्वकर्मा
CG Holi Special Story: आदिवासी जनजातियों की अनोखी परंपराएं आज भी कायम हैं। आधुनिक युग में भी उन्होंने अपनी संस्कृति को संरक्षित रखा है। सरगुजा संभाग में रहने वाले पंडो जनजाति के लोग होली त्योहार भी अनोखे तरह से मनाते हैं। होलिका दहन के दूसरे दिन सुबह इनके बीच तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है और जीतने वाले को महुआ का एक पेड़ इनाम में गांव वालेे देते हैं।
होलिका दहन के बाद वहां जल रहे अंगारों को पंडो जनजाति के लोग अपने-अपने घरों में लाते हैं और चूल्हा में उसे डालकर आग जलाते हैं और उसी आग से होली का खाना पकाते हैं। पंडो समाज के अध्यक्ष उदय पंडो ने बताया कि सरगुजा संभाग में पंडो जनजाति की संख्या करीब 25 हजार से ज्यादा है।
हम खुद को महाभारत काल के पंडो का वंशज मानते हैं। अपनी पुरानी परंपरा का निर्वहन करते रहना चाहते हैं। इससे हमारी संस्कृति बरकरार रहेगी। उदय पडो ने बताया कि यह परंपरा पिछले कई पीढ़ियों से चली आ रही है। पूर्व में ही होलिका की तैयारी जनजाति के लोग अपने-अपने गांव में शुरू कर देते हैं।
इसके लिए लोग अपने गांव के बाहरी इलाके में हरे पेड़ की खम्भे रूपी लकड़ियों से होलिका तैयार करते हैं और उसे दहन करते हैं। इसके दूसरे दिन सुबह उनके द्वारा तीरंदाजी प्रतियोगिता आयोजित की जाती है।
होलिका दहन के दौरान जलकर बचे लकड़ी के ठूंठ पर तीन सौ मीटर की दूरी से तीर-धनुष से निशाना लगाते हैं। जिसका निशाना लग जाता है वह विजेता बनता है। इसके बदले में उसे गांव वाले एक महुआ का पेड़ सालभर के लिए इनाम में देते हैं। इसके बाद दूसरे साल जब प्रतियोगिता होती है, तो उस समय जो जीतता है, उसे दे दिया जाता है। इस अवधि में महुआ फूल और डोरी को जीतने वाला ही बीनता है।
Published on:
24 Mar 2024 09:42 am
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