गौरतलब है कि टीएस सिंहदेव 14 जुलाई को जब सरगुजा के दौरे पर आए थे, तब से ही इस तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि वे कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं। बताया जा रहा है कि उन्होंने शुक्रवार को अविभाजित सरगुजा के तीनों जिले के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ एक बैठक भी की थी।
इसके बाद शनिवार को उन्होंने पंचायत विभाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। वे अपने प्रभार वाले बाकी विभागों में कैबिनेट मंत्री के रूप में बने रहेंगे। स्वास्थ्य मंत्री के पास अब लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, बीस सूत्रीय वाणिज्यिक कर का प्रभार है।
सीएम को भेजे गए लेटर में ये लिखा
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने सीएम को भेजे गए पत्र में लिखा कि विगत 3 से अधिक वर्षों से मैं पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के भारसाधक मंत्री के रूप में कार्य कर रहा हूं। इस दौरान कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित हुई है जिससे आपको अवगत कराना चाहता हूं।
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत् प्रदेश के आवास विहीन लोगों को आवास बनाकर दिया जाना था जिसके लिए मैंने कई बार आपसे चर्चा कर राशि आवंटन का अनुरोध किया था किन्तु इस योजना में राशि उपलब्ध नहीं की जा सकी। फलस्वरूप प्रदेश के लगभग 8 लाख लोगों के लिए आवास नहीं बनाए जा सके।
इसके अतिरिक्त 8 लाख घर बनाने में से करीब 10 हजार करोड प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सहायक होते हमारे जन घोषणा पत्र में छत्तीसगढ़ के 36 लक्ष्य अंतर्गत ग्रामीण आवास का अधिकार प्रमुख रूप से उल्लेखित है। विचारणीय है कि प्रदेश में वर्तमान सरकार के कार्यकाल में बेघर लोगों के लिए एक भी आवास नहीं बनाया जा सका और योजना की प्रगति निरंक रही। मुझे दु:ख है कि इस योजना का लाभ प्रदेश के आवास विहीन लोगों को नहीं मिल सका।
यह भी नाराजगी का कारण
पत्र में सिंहदेव ने आगे लिखा है कि किसी भी विभाग के अधीन विवेकाधीन योजनाओं के अंतर्गत कार्यों की स्वीकृति का अनुमोदन उस विभाग के भारसाधक मंत्री का निर्धारित अधिकार है। किन्तु मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के अंतर्गत कार्यों की अंतिम स्वीकृति हेतु रूल्स ऑफ बिजनेस के विपरीत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की एक समिति गठित की गयी।
कार्यों की स्वीकृति हेतु मंत्री के अनुमोदन उपरांत अंतिम निर्णय मुख्य सचिव की समिति द्वारा लिये जाने की प्रक्रिया बनाई गई जो प्रोटोकाल के विपरीत और सर्वथा अनुचित है। इस पर मेरे द्वारा समय-समय पर लिखित रूप से आपत्ति दर्ज कराई गई। किन्तु आज तक इस व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सका है फलस्वरूप 500 करोड़ से ज्यादा की राशि का उपयोग मंत्री/विधायक/ जनप्रतिनिधि के सुझावों के अनुसार विकास कार्यों में नहीं किया जा सका। वर्तमान में पंचायतों में अनेक विकास कार्य प्रारंभ ही नहीं हो पाए।
पेसा अधिनियम का भी किया जिक्र
टीएस ने पत्र में लिखा है कि पेसा अधिनियम आदिवासी भाई-बहनों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसे प्रदेश लागू करने के संबंध में जनघोषणा-पत्र में भी वादा किया था तथा काफी मेहनत से नियम बनाये गये थे ताकि उसे सफलतापूर्वक प्रदेश में लागू किया जा सके। 13 जून, 2020 से प्रदेश के आदिवासी ब्लॉकों में जाकर, वहां के स्थानीय लोगों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों इत्यादि से निरंतर 2 वर्षों से संवाद स्थापित कर इसका प्रारूप तैयार किया गया किन्तु विभाग द्वारा जो प्रारूप कैबिनेट कमेटी को भेजा गया था।
इसके अनुसार चर्चा हुई उसमें जल, जंगल जमीन से संबंधित महत्वपूर्ण बिन्दुओं को बदल कर कैबिनेट की प्रेसिका में शायद पहली बार बदल दिया गया। भारसाधक मंत्री को विश्वास में नहीं लिया गया जो कि अस्वस्थ परम्परा को स्थापित करेगा। इस विषय पर पृथक से मैंने व्यक्तिगत पत्र भी आपको लिखा है।
जनघोषणा में किए गए सभी वादे नहीं हुए पूरे
सिंहदेव ने सीएम को पत्र में लिखा कि जनघोषणा पत्र में किए गए वादों में पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकारों को पूर्ण रूप से लागू करना भी है जिसके लिए आपसे कई बार चर्चा तथा विभागीय तौर पर भी पहल की किन्तु मुझे यह निराश मन से कहना पड़ रहा है कि इस पर आज पर्यन्त कोई भी सहमति सकारात्मक पहल नहीं हो पाई। महात्मा गांधी नरेगा योजना का सफल क्रियान्वयन इस प्रदेश में हुआ है।
उल्लेखनीय है कि कोरोना काल में जब जरूरतमंदों को रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत थी, छत्तीसगढ़ इस योजना के क्रियान्वयन में सम्पूर्ण भारत में अग्रणी रहा। 20 हजार से अधिक कोविडकेयर सेंटर्स का सफलतापूर्वक संचालन पंचायतों द्वारा किया गया। प्रदेश के ग्रामीण अंचलों मे योजना के माध्यम से हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देने में सफल रहे। जिसकी प्रशंसा देश के सभी हिस्सों में हुई।
मनरेगा का कार्य करने वाले रोजगार सहायकों के मेहनत को देखते हुये उनके वेतनवृद्धि का प्रस्ताव पंचायत विभाग द्वारा वित्त विभाग को प्रेषित किया गया जो कि वित्त विभाग की सहमति न मिलने के कारण आजपर्यन्त लंबित है। इस विषय पर व्यक्तिगत तौर पर आपसे कई बार चर्चा हुई।
साजिश के तहत रोजगार सहायकों को कराया गया हड़ताल
सिंहदेव ने पत्र में लिखा कि एक साजिश के तहत् रोजगार सहायकों से हड़ताल करवाकर मनरेगा के कार्यों को प्रभावित किया गया। इसमें सहायक परियोजना अधिकारियों (संविदा) की भूमिका स्पष्ट रूप से निकल कर आई। स्वयं आपके द्वारा हडतालरत कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने के लिए एक कमेटी गठित की गई, इसके बाद भी हड़ताल वापस नहीं ली गई।
हड़ताल के कारण लगभग 1250 करोड का गजदूरी भुगतान प्रभावित हुआ तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नहीं पहुंच सका। समन्वय के माध्यम से आपसे अनुमोदन लेकर सहायक परियोजना अधिकारियों (संविदा) के स्थान पर रेगुलर सहायक परियोजना अधिकारियों की पदस्थापना भी कर दी गयी थी ताकि मनरेगा का कार्य सुचारू रूप से चल सके और रोजगार की तालाश कर रहे नागरिको को रोजगार से वंचित न होना पड़े।
टीएस ने लिखा कि जब हमारे प्रदेश को रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तो सहायक परियोजना अधिकारियों के द्वारा कार्य को प्रभावित रखा गया।