
ऐतिहासिक रामगढ़ की पहाड़ी (photo Patrika)
CG News: @प्रणय राज सिंह राणा। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के उदयपुर क्षेत्र में स्थित पौराणिक और ऐतिहासिक रामगढ़ की पहाड़ी अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। मान्यता है कि महाकवि कालिदास ने यहीं बैठकर महाकाव्य ‘मेघदूतम्’ की रचना की थी।
जनश्रुतियों के अनुसार यह ही वह स्थान है, जहां भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास काल के दौरान विश्राम किया था। इस वजह से सरगुजा को पूर्व में विश्रामपुर के नाम से भी जाना जाता था। वहीं विश्व की सबसे प्राचीन नाट्यशाला सीताबेंगरा और जोगीमारा की गुफाएं भी यहीं स्थित हैं। यहां से राम वनगमन पथ भी गुजरा है। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक धरोहर रामगढ़ की पहाड़ी पर चट्टानों में अब दरारें आ गई हैं। ग्रामीणों का कहना है कि पास की कोयला खदान में हो रही ब्लास्टिंग के कारण आई हैं। इस साल हुई बारिश ने भी इसे और खतरनाक बना दिया है।
जिस रामगढ़…
बारिश का पानी इन दरारों से लगातार निकलता रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे उनके बीच पकड़ और कमजोर हुई है। इससे भू-स्खलन भी बीते सालों की तुलना में इस साल अधिक हुआ है। सिंहद्वार के पास की यह चट्टान यदि गिर गई तो मंदिर तक पहुंचना लगभग असंभव हो जाएगा। इसके ऐतिहासिक महत्व को संजोए रखने के लिए आषाढ़ महीने के पहले दिन यहां जिला प्रशासन दो-तीन दिवसीय कार्यक्रम कराता रहा है। हालांकि पहाड़ी से खनन एरिया की दूरी को लेकर ग्रामीणों और प्रशासन के बीच विवाद है। ग्रामीण खनन एरिया को 8 से 10 किलोमीटर बताते हैं, वहीं प्रशासन 15 किलोमीटर की बात कहता है।
ग्रामीण त्रिलोचन यादव कहते हैं कि रामगढ़ मंदिर और पहाड़ी पूर्वजों के जमाने से हमारी आस्था का केंद्र है। इस पर दरारें बढ़ रही हैं। यदि चट्टानें गिरीं तो हम मंदिर तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे। यहां आने-जाने का एक ही रास्ता है।
पीजी कॉलेज अंबिकापुर के विभागाध्यक्ष भूगोल डॉ. अनिल सिन्हा ने कहा कि रामगढ़ की पहाड़ी पर पड़ रही दरारों की प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों वजहें हो सकती हैं। लंबवत खड़े पहाड़ों में ऐसी परिस्थिति चिंतनीय है। इनके नुकसान की संभावना मौसम परिवर्तन के साथ-साथ बढ़ती जाएंगी। इस इलाके में आने वाले समय में किसी भी प्रकार से यदि भूकंपीय स्थिति निर्मित होती है तो पहाड़ को निश्चित तौर पर नुकसान होगा।
रामगढ़ की पहाड़ी पर स्थित श्रीराम मंदिर पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 632 सीढ़ियां और कठिन पथरीला रास्ता तय करना पड़ता है। यह वही मार्ग है जिस पर चलते हुए लाखों श्रद्धालु हर वर्ष खासकर नवरात्रि और अन्य पर्व-त्योहारों में भगवान राम, माता जानकी, लक्ष्मण और भगवान विष्णु के दर्शन के लिए आते हैं। इस रास्ते में एक हिस्से की चट्टान में ही बड़ी दरारें नजर आ रही हैं। वन विभाग ने भी सिंहद्वार के पास यह लिख रखा है कि पत्थर में दरार है, सावधान एवं सतर्क रहें।
खदान के क्षेत्र को पहाड़ के और करीब लाने की भी तैयारी है। हमारा पहाड़ कांपता है। चट्टानों में दरारें पड़ गई हैं। मंदिर का रास्ता भी खतरे में है। अगर यही हाल रहा तो जल्द ही यह जगह बर्बाद हो जाएगी। -सुनील बैगा, रामगढ़ मंदिर
Published on:
12 Nov 2025 08:24 am
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