देश में कई शहरों में कचरे से बिजली उत्पादन हो रहा है। हमारे यहां भी प्रयास किए जाएं तो अजमेर और नगर निगम को फायदा मिल सकता है।
अजमेर शहर में डोर-टू-डोर एकत्रित कचरे का सदुपयोग हो सकता है। देश में कई शहरों में कचरे से बिजली उत्पादन हो रहा है। हमारे यहां भी प्रयास किए जाएं तो शहर और नगर निगम को फायदा मिल सकता है।
शहर में प्रतिमाह प्लास्टिक की थैलियों, कागज, कांच, टायर, पेड़-पौधों के पत्तों, फल-सब्जी के छिलके, घास-फूस, गत्ते, गुटखे के पाउच और अन्य रूप में करीब 60 से 70 टन कचरा निकल रहा है।
इसमें 70 प्रतिशत एकत्रित कचरे को सेदरिया ट्रेंचिंग ग्राउंड पहुंचाया जाता है। जबकि करीब 30 प्रतिशत कचरा खाली प्लॉट, मैदानों, नालों में फैला रहता है।
देश में तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के कंजिरांगल, जबलपुर, भोपाल, रीवा, उज्जैन, जमवारामगढ़ रोड, सहित कई शहरों में कचरे से बिजली उत्पादन हो रहा है।
इनकी क्षमता 10 से 25 हजार मेगावट तक है। अजमेर में सरकार, नगर निगम और प्रशासनिक स्तर पर प्रयास किए जाएं तो अनुपयोगी कचरे से बिजली बन सकती है।
स्वच्छ भारत मिशन (2.0) में राष्ट्रीय व्यवहार परिवर्तन संचार फ्रेमवर्क लॉन्च किया गया है। कचरे से बिजली उत्सर्जन के लिए केंद्र और राज्य सरकार 50-50 प्रतिशत राशि देती है।
प्लांट बनाने में 100 से 150 करोड़ रुपए व्यय होते हैं। आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों ने पीपीपी मॉडल पर प्लांट तैयार किए हैं।
ऊर्जा के वैकल्पिक स्त्रोत तलाशने जरूरी हैं। अनुपयोगी कचरे से बिजली उत्पादन हो सकता है। यह कचरे के निष्पादन के अलावा ऊर्जा के नए स्त्रोत बढ़ाने में मददगार है। प्रयास किए जाएं तो शहर और नगर निगम को फायदा हो सकता है।
प्रो. आलोक चतुर्वेदी, केमिस्ट्री विशेषज्ञ कॉलेज शिक्षा निदेशालय