अंबिकापुर

Mainpat bauxite mine expansion: Video: मैनपाट में बाक्साइट खदान विस्तार का विरोध, जनसुनवाई के लिए लगाए गए टेंट-पंडाल को ग्रामीणों ने उखाड़ा

Mainpat bauxite mine expansion: जिला पंचायत सदस्य के नेतृत्व में ग्रामीणों ने शुरु किया विरोध, कहा- जमीन हमारी है, हम नहीं चाहते कि यहां खुले कोई और खदान, पहले भुगत चुके

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Mainpat TI and DCC talking with each other (Photo- Video grab)

अंबिकापुर। मैनपाट के कंडराजा व उरगा में बाक्साइट खदान का विस्तार (Mainpat bauxite mine expansion) करने की प्रक्रिया चल रही है। रविवार को इसके लिए प्रशासन की ओर से नर्मदापुर मिनी स्टेडियम में जनसुनवाई का आयोजन किया गया था। प्रशासन ने यहां टेंट-पंडाल लगा रखा था। इधर ग्रामीण बाक्साइट खदान नहीं खुलने देने को लेकर लांमबंद हैं। इसी बीच गुस्साए ग्रामीणों ने टेंट-पंडाल को उखाड़ दिया। मौके पर कमलेश्वरपुर टीआई अपने स्टाफ के साथ पहुंचे थे, लेकिन उनके सामने ही ग्रामीण पंडाल उखाड़ते दिखे। टीआई की समझाइश का भी उनपर असर नहीं हुआ।

Tent and pandal demolished by villagers (Photo- Video grab)

दरअसल छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से विख्यात मैनपाट के कंडराजा में सीएमडीसी (छत्तीसगढ़ मिनरल डेव्हलपमेंट कार्पोरेशन) द्वारा 135 हेक्टेयर में प्रस्तावित बाक्साइट खदान विस्तार (Mainpat bauxite mine expansion) को लेकर शुक्रवार को जनसुनवाई रखी गई थी। इसका विरोध क्षेत्र के ग्रामीणों ने किया।

प्रशासन द्वारा जनसुनवाई के लिए नर्मदापुर में पंडाल लगवाया गया था, जिसे विरोध कर रहे ग्रामीणों ने उखाड़ दिया। ग्रामीणों का नेतृत्व जिला पंचायत सदस्य रतनी नाग द्वारा किया गया।

उनका कहना था कि मैनपाट में पहले से ही चल रहे बाक्साइट खदान (Mainpat bauxite mine expansion) के कारण पर्यावरण को भारी नुकसान हो चुका है। उन्होंने कहा कि खदान के विस्तार से हमारी जल, जंगल व जमीन को खतरा है, हम किसी भी कीमत पर इसके लिए अपना समर्थन नहीं देंगे।

Mainpat bauxite mine expansion: हरियाली से है मैनपाट की पहचान

ग्रामीणों का कहना था कि मैनपाट एक पर्यटन स्थल है तथा यहां की पहचान हरियाली से है। बाक्साइट खदान का विस्तार होने से बची-खुची हरियाली भी खत्म हो जाएगी। यहां के लोग मुख्य रूप से खेती-किसानी पर निर्भर हैं।

खदान की वजह से यहां की जमीन का उपजाऊ (Mainpat bauxite mine expansion) नहीं रहेगी। भू-जल स्तर नीचे चले जाने से पानी की भी कमी होगी, वहीं पर्यावरण को काफी नुकसान होने के साथ जनजातीय समुदाय का पारंपरिक जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा।

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Updated on:
30 Nov 2025 04:12 pm
Published on:
30 Nov 2025 04:11 pm
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