दस दिनों तक रहेगी मेला परिसर में कार्यक्रमों की धूम
शहर से 25 किमी पश्चित दिशा की तरफ स्थित रामपायली नगरी में 05 नवंबर से कार्तिक मेला शुरु हो रहा है। इस मेले में प्रतिवर्ष तीन राज्यों से दर्शनार्थी मेले का लुफ्त लेने पहुंचते हंै। मेले का मुख्य आकर्षण का केन्द्र यहां स्थित श्रीराम मंदिर होता है। बताया जाता है कि भगवान राम 14 वर्षो के वनवास के समय इस नगरी में पधारे थे। तब से इस नगरी का नाम राम पदावली अर्थात रामपायली हो गया। रामयण ग्रंथ में इस रामपायली केा जिक्र मिलता है। यहां भगवान श्रीराम सरभंग ऋषि से मिले थे और विराध नामक राक्षक का वध भी किया गया। इस ऐतिहासिक नगरी में इस बार मेला 5 नवंबर से शुरु होगा। मेले की सम्पूर्ण तैयारिया शुरू कर दी गई है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक श्रीराम मंदिर का निर्माण करीब 600 वर्ष पूर्व भंडारा जिले के तत्कालीन मराठा भोषले ने नदी किनारे एक किले के रुप में वैज्ञानिक ढंग से कराया था। भारत के प्राचीन इतिहास में इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख है। श्रीराम मंदिर में प्रमुख सिद्ध मूर्ती बालाजी एवं सीताजी की है। भगवान राम की मूर्ति वनवासी रुप में है। सिर पर जूट और वामांग में सीता का भयभीत संकुचित स्वरुप है। राम भगवान का बाया हाथ विराध राक्षक को देखकर भयभीत सीता के सिर पर उन्हें अभय देते हुए हैं, जो भक्तों कों भगवान राम और सीता के प्रत्यक्ष दर्शन कराते हैं।
मंदिर के पुजारी के अनुसार भगवान राम की वनवासी वेशभूषा वाली यह प्रतिमा करीब चार सौ वर्ष पूर्व चंदन नदी के ढोह से किसी व्यक्ति को स्वप्न में दिखाई देने से प्राप्त हुई थी। मूर्ति को निकालकर नदी की टेकरी पर नीम के वृक्ष के नीचे टिका दिया गया और राजा भोषले ने मंदिर का जीर्णोद्वार कर मूर्ति की स्थापना की। सन 1877 में तत्कालीन तहसीलदार स्व शिवराज सिंह चौहान ने मंदिर का जीर्णोद्वार कराया। यह भूमि दशरु पटेल से गांव खरीदकर रामचंद्र स्वामी देवास्थान ट्रस्ट की स्थापना की गई।
मंदिर परिसर के नीचे हनुमान जी की मूर्ति भी स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पूर्व मुखी लंगड़े हनुमान जी की मूर्ति का एक पांव जमीन और दूसरा पांव जमीन के अंदर होने से स्पष्ट दिखाई नहीं देता है। वर्षो पूर्व एक समिति ने हनुमान जी की मूर्ति हटाकर मंदिर में स्थापित करने की कोशिश की थी। तब करीब पचास फिट से अधिक का गड्ढा खोदा गया, लेकिन पांव का दूसरा छोर नहीं मिल सका। तब हनुमान जी ने स्वप्न में आकर बताया कि मूर्ति नदी किनारे ही रहने दो यदि मंदिर ही बनवाना है, तो मूर्ति के पास बनवाओं। मान्यताओं में है कि हनुमान जी का पांव पातल लोक तक गया है। यहां पहुंचने वाले भक्त इन मूर्तियों की कहानिया सुनकर भक्ती भाव से ओत प्रोत हो जाते हैं।
इसी प्रकार लोगों की हर मनोकामना पूर्ण करने वाली शिवलिंग के दर्शन करने भी दूर-दूर से श्रृद्धालु पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग स्वयं प्रगट हुई है। हजारों वर्ष पूर्व एक बुढिय़ा के आंगन में रेत की शिवलिंग बनती थी। लेकिन बुढिय़ा उसे कचरा समझकर झाड़ दिया करती थी। कई बार झाडऩे के बाद भी शिवलिंग नहीं हटी और स्थापित हो गई।
मंदिर के पास ही चंदन नदी के तट पर कार्तिक मास की पूर्णिमा में प्रतिवर्ष जनपद स्तर से सात दिनों का भव्य मेला लगता है। पूर्णिमा की रात्रि को भगवान बालाजी की शुद्ध घी से कच्चे धागे की बाती से 15 टिपुर रखे जाते हैं। दूर-दूर के दर्शनार्थी आते हैं और लुफ्त उठाते हैं। इस बार यह मेला 05 नवंबर से शुरू होगा। इसको लेकर तैयारियां भी शुरू कर दी है।