बांसवाड़ा

Rajasthan News: एक लाचार पिता की गुहार… सरकार! मेरी बेटी को दो वक्त की रोटी दे दो

कहते हैं कि बेटी माता-पिता के लिए ‘नेमत’ होती है। मगर…कुंवाडिया गांव में एक बेटी का जन्म हुआ तो उसकी शारीरिक कमजोरियों को जानकर मां ने, बाप-बेटी को छोड़ प्रेम विवाह कर लिया और दूसरे घर चली गई।

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बांसवाड़ा. बच्ची और पिता से बातचीत करती टीम। फोटो पत्रिका

बांसवाड़ा। कहते हैं कि बेटी माता-पिता के लिए ‘नेमत’ होती है। मगर…कुंवाडिया गांव में एक बेटी का जन्म हुआ तो उसकी शारीरिक कमजोरियों को जानकर मां ने, बाप-बेटी को छोड़ प्रेम विवाह कर लिया और दूसरे घर चली गई। अब लाचार पिता के सामने सवाल यह कि मजदूरी पर जाए या दिव्यांग बेटी की देखभाल करे। पंचायत छोटी पनासी के इस गांव में एक छोटे से घर में लाचारी और बेबसी का दर्द लिए एक पिता और उसकी 8 साल की दिव्यांग बेटी का जीवन बीत रहा है।

लक्ष्मण पुत्र भातू पटेल मजदूरी करता है। उसके चेहरे पर छाई उदासी और आंखों में भरे आंसू उसकी पीड़ा को बयां करते हैं। अपनी दिव्यांग बेटी प्रियंका के लिए कुछ भी न कर पाने की लाचारी ने उसे तोड़कर रख दिया है। बेटी जन्म से ही मूक-बधिर और मानसिक दिव्यांग पैदा हुई। यह सच्चाई जान लक्ष्मण की पत्नी दुधमुंही बच्ची और परिवार को छोड़ प्रेम विवाद कर चली गई।

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पिता के निधन से टूट गया लक्ष्मण

छह महीने पहले, लक्ष्मण के पिता का निधन हो गया। प्रियंका के दादा ही उसकी देखभाल करते थे, जब लक्ष्मण मजदूरी के लिए बाहर जाता था। वह कहता है, ‘मैं कमाऊं या अपनी बेटी की देखभाल करूं ?’ बेटी के इलाज के लिए लक्षण ने अस्पताल से लेकर सरकारी विभागों तक के चक्कर काटे, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। सरकारी दतरों के चक्कर काट-काटकर और हर दरवाजे पर निराशा मिलने के बाद उसने थक-हारकर एक मार्मिक फैसला लिया है। वह अपनी बेटी को सरकार को सौंपना चाहता है, ताकि उसे बेहतर इलाज मिले और दो वक्त की रोटी नसीब हो। हालांकि एक गैर सरकारी संगठन के लोग उसके घर पहुंचे और उसे सरकारी योजनाओं में पात्रता के आधार पर लाभ दिलाने का प्रयास कर रहे हैं।

फिंगर प्रिंट भी साथ छोड़ गए

बाप-बेटी का किस्मत ने भी साथ नहीं दिया। परेशानी तब और बढ़ गई, जब पता चला कि बेटी के फिंगर प्रिंट ही नहीं आ रहे हैं। आधार कार्ड बनवाने की प्रक्रिया में मुश्किल आई। परतापुर-गढ़ी के कई चक्कर काट कर थक गए। लक्ष्मण पटेल की यह दर्दभरी दास्तां सुनकर हर कोई भावुक हो जाता है, लेकिन उनके मददगार के रूप में कोई आगे नहीं आ रहा है।

जानकारी मिलते ही काम शुरू

जानकारी मिलते ही हमारी टीम लक्ष्मण के घर पहुंची। टीम ने दिव्यांग प्रमाण-पत्र, पेंशन इत्यादि सहायता की प्रक्रिया में जुट गई है। एक पखवाड़े में हरसंभव मदद दिलाई जाएगी। टीम के सदस्य पीयूष जैन, कलावती निनामा एवं हरीश मदद कर रहे हैं।

कमलेश बुनकर, समन्वयक, चाइल्ड हेल्प लाइन, बांसवाड़ा

Updated on:
22 Sept 2025 02:58 pm
Published on:
22 Sept 2025 02:56 pm
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