Makhana Cultivation : बिहार के बाद अब राजस्थान में मखाने की खेती होगी। पूर्णिया में राजस्थान के किसान गुर सीखेंगे। राज्य सरकार ने बांसवाड़ा जिले को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना है। अब मखाने की खेती से राजस्थान के किसान मालामाल हो सकेंगे।
Makhana Cultivation : राजस्थान का आदिवासी बहुल जिला बांसवाड़ा अब एक नई कृषि क्रांति की ओर कदम बढ़ा रहा है। जिस ‘मखाने’ ने हाल ही में बिहार की राजनीति में चर्चा बटोरी, वही मखाना अब बांसवाड़ा की धरती पर उगाने की तैयारी चल रही है। राज्य सरकार ने जिले को इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चुना है। यदि यह प्रयोग सफल रहा तो आने वाले समय में राजस्थान के अन्य जिलों में भी मखाना की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। मखाना उत्पादन के लिए किसानों को तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार ने पहल की है।
उद्यान विभाग के उप निदेशक एवं दल प्रभारी दल सिंह गरासिया ने बताया कि बिहार के पूर्णिया जिले स्थित कृषि महाविद्यालय में जिले के 30 प्रगतिशील किसानों और विभागीय अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस दल में सहायक निदेशक उद्यान बदामी लाल निनामा, कृषि अधिकारी मोहनलाल खाट सहित कई कृषक शामिल हैं। यह टीम बांसवाड़ा से रवाना हो चुकी है और 19 से 21 अगस्त तक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित होगा।
मखाना की खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी होती है। इसके लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 100 से 250 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा उपयुक्त मानी जाती है। खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सबसे आदर्श होती है, जिसमें पानी की अच्छी निकासी हो सके। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
मखाना की खेती दो तरीकों से की जाती है। पहला तरीका तालाब आधारित है, जिसमें 4 से 6 फीट गहराई वाले तालाबों में बीज डाले जाते हैं। दूसरा आधुनिक तरीका धान की तरह खेतों में पानी भरकर खेती करने का है। इसमें खेतों के चारों ओर 2 फीट ऊँचा बांध बनाकर 1 से 1.5 फीट तक पानी भरा जाता है।
बुवाई का समय दिसंबर से जनवरी के बीच माना जाता है। किसान सीधे बीज बिखेर सकते हैं या फिर नर्सरी से पौध तैयार कर खेत में रोपाई कर सकते हैं।
तालाब आधारित खेती में प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र खाद और पोषण की पूर्ति करता है, लेकिन खेत आधारित खेती में प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही गोबर की खाद और हरी खाद का उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है। खेत में हमेशा पानी भरा रहना जरूरी है, खासकर अप्रैल से अगस्त तक जब पौधों में फूल लगते हैं। फसल करीब चार महीने में तैयार हो जाती है। जून-जुलाई में फल पानी की सतह पर आते हैं और धीरे-धीरे नीचे बैठ जाते हैं।
सितंबर-अक्टूबर में बीज इकट्ठा किए जाते हैं, जिन्हें सुखाकर प्रोसेसिंग की जाती है और बाजार में मखाना के रूप में बेचा जाता है।