उपद्रव, भड़काऊ भाषण और जेल के बाद अब मौलाना तौकीर रजा आर्थिक मोर्चे पर भी घिर गए हैं। बरेली में उपद्रव का आरोप झेल रहे तौकीर रजा अब जिला सहकारी बैंक के डिफॉल्टर के रूप में सामने आए हैं।
बरेली। उपद्रव, भड़काऊ भाषण और जेल के बाद अब मौलाना तौकीर रजा आर्थिक मोर्चे पर भी घिर गए हैं। बरेली में उपद्रव का आरोप झेल रहे तौकीर रजा अब जिला सहकारी बैंक के डिफॉल्टर के रूप में सामने आए हैं।
बैंक के रिकार्ड के अनुसार, उन्होंने वर्ष 1989 में मात्र ₹5,055 का उर्वरक ऋण लिया था, मगर 36 साल बीत जाने के बाद भी एक रुपया तक वापस नहीं किया।
जिला सहकारी बैंक की शाखा रसूलपुर बहुउद्देश्यीय सहकारी समिति से लिया गया यह ऋण खेतों में खाद डालने के लिए था। मगर तौकीर रजा ने रकम लेने के बाद कभी ब्याज तो दूर, मूलधन तक नहीं लौटाया। अब जब उपद्रव के आरोप में वह जेल की हवा खा रहे हैं, तो बैंक ने भी पुराना हिसाब बराबर करने की तैयारी शुरू कर दी है। बुधवार को बैंक ने उसकी फाइल दोबारा खोली और ब्याज सहित बकाया ₹40,555 का आंकड़ा निकाला।तौकीर रजा का ऋण पुराना जरूर है, पर वसूली का अधिकार खत्म नहीं हुआ। उनकी फाइल दोबारा खोली गई है। अब कानूनी रिकवरी की कार्रवाई होगी।
जे.के. सक्सेना, चेयरमैन, जिला सहकारी बैंक
समिति ने पिछले तीन दशकों में कई बार नोटिस जारी किए, मगर तौकीर रजा ने कभी जवाब नहीं दिया।
2021 में बैंक की टीम उसके पैतृक गांव करतौली (जनपद बदायूं) तक पहुँची, लेकिन वहां न तो तौकीर मिला, न परिवार का कोई सदस्य। इस दौरान उसकी संपत्तियां बरेली में स्थानांतरित हो चुकी थीं। बिहारीपुर में आलीशान मकान, और राजनीति में बढ़ता कद, यही वजह रही कि बैंक अधिकारी भी कार्रवाई से कतराते रहे।
अब तौकीर रजा की संपत्ति पर कुर्की की कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। रिकवरी के लिए आरसी (Revenue Certificate) जारी की जाएगी, जिसके बाद प्रशासनिक स्तर पर वसूली प्रक्रिया शुरू होगी। सहकारी विभाग ने यह मामला “प्रभावशाली डिफॉल्टर” श्रेणी में डाल दिया है।
26 सितंबर को बरेली में हुए उपद्रव में तौकीर रजा की भूमिका पहले से जांच के घेरे में है। तीन थानों में 10 मुकदमे दर्ज हैं और वह वर्तमान में फतेहगढ़ जेल में बंद हैं। अब सामने आया यह 36 साल पुराना कर्ज घोटाला उनकी छवि पर एक और काला धब्बा बन गया है।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए 2007 में बनाई गई उनकी पार्टी इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे हैं।