IIT Bhilai: बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। पॉलीमर बेस्ड यह इंक इंजेक्टेबल है, जिससे इसे कहीं भी इस्तेमाल करने पर यह उसका वास्तविक शेप ले सकती है।
IIT Bhilai: आईआईटी भिलाई ने थ्रीडी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी को जोड़ते हुए एक खास तरह की इंक इजाद की है। यह इंक बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है। पॉलीमर बेस्ड यह इंक इंजेक्टेबल है, जिससे इसे कहीं भी इस्तेमाल करने पर यह उसका वास्तविक शेप ले सकती है। आईआईटी ने इसे पहले चरण में इंजीनियरिंग एप्लीकेशन और बायोमेडिकल के लिए तैयार किया है।
आईआईटी भिलाई के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. संजीब बनर्जी के नेतृत्व में तैयार हुई स्मार्ट इंजेक्टेबल इंक मटेरियल का उपयोग सबसे ज्यादा मेडिकल साइंस के टीशूज कैप होल के तौर पर किया जा सकेगा। मसलन, युद्ध के दौरान कई बार सैनिक बुरी तरह से जख्मी हो जाते हैं। ऐसे में इस इंजेक्टेबल इंक के जरिए सैनिक का ब्लड लॉस कम करने में मदद मिलेगी। इसे और अधिक पुख्ता करने अगले 3 साल रिसर्च जारी रहेगी।
डॉ. संजीब बनर्जी ने बताया कि, आईआईटी में इसके प्रोटोटाइप का परीक्षण कर लिया गया है, जिसमें सफलता मिली है। इस मटेरियल की खासियत है कि यह पूरी तरह से बायोकंपैटेबल है, जिससे इससे सुरक्षित कहा जा सकता है। यह इंक एक तरह के कैप होल की तरह काम करेगी। यह इंक स्टील के बराबर स्टै्रंथ में है, जिससे इसकी क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। पहले तक जहां इंजूरी होने की स्थिति में टाइटेनियम का इस्तेमाल करते हुए कैप होल लगाए जाते थे, जो लंबी अवधि में शरीर पर नकारात्मक प्रभाव डालते थे, यह खास मटेरियल उसका एक तरह से अल्टरनेटिव के तौर पर काम आ सकेगा।
इस इंक को डेवलप करने वाले शोधार्थियों का कहना है कि आईआईटी जल्द ही इस रिसर्च में एक पड़ाव आगे बढ़ते हुए इसकी क्षमता विकास पर ध्यान दे रहा है। आने वाले समय में इस इंक का उपयोग एयरोप्लेन में आने वाली गड़बडिय़ों को दूर करने में किया जाएगा। आईआईटी की यह रिसर्च अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित जर्नल एडवांस्ड फंक्शनल मटेरियल में प्रकाशित हुआ है। इस शोध को आईआईटी भिलाई, डीएसआईआर, भारत सरकार और एसईआरबी को समर्पित किया गया है।