Ladli Behna Yojana: लाड़ली बहना योजना को लेकर आया बड़ा अपडेट, एमपी की मोहन यादव सरकार कर रही है बड़ी तैयारी, 2028 से पहले मिल सकती है लाड़ली बहना योजना की 3000 रुपए महीना किस्त...
Ladli Behna Yojana: मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार की महत्वाकांक्षी लाड़ली बहना योजना को लेकर बड़ा अपडेट सामने आ रहा है। जानकारी के मुताबिक सरकार जल्द ही योजना की राशि 1500 रुपए से बढ़ाकर सीधे 3000 रुपए करने की तैयारी कर रही है। संकेत साफ है कि आने वाले नगरीय चुनाव (2027) और विधान सभा चुनावों (2028) से पहले यह फैसला पूरे सियासी समीकरण पलट सकता है।
बता दें कि एमपी में सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने-अपने स्तर पर 2028 के विधान सभा चुनावों की रणनीति पर तैयारियां शुरू कर चुका है। परिसीमन बदल रहे हैं और महिलाओं की चुनावों में भागीदारी बढ़ाने की दिशा में सरकार के कदम भी।
नये साल 2026 को कृषि और किसानों के नाम करने जा रही प्रदेश की मोहन सरकार सत्ता की चाबी अपने ही हाथ रखने के लिए एक बार फिर लाड़ली बहनों को जीत की गारंटी बनाने की तैयारी शुरू कर चुकी है। इसके लिए वह लाड़ली बहना योजना के साथ ही 60 से ज्यादा उम्र की महिलाओं के लिए भी नई स्कीम लाने पर काम कर रही है। यानी सरकार अपने वोट बैंक को पहले से और ज्यादा मजबूत करने की दिशा में डबल कदम बढ़ा रही है।
मोहन सरकार के हालिया बजट पर नजर डाली जाए तो महिला एवं बाल विकास विभाग का बजट जीत की गारंटी माने जाने का उदाहरण नजर आता है। महिला एवं बाल विकास विभाग के लिए मध्य प्रदेश सरकार का बजट 1 लाख 23 हजार करोड़ रुपए का का है। इसमें भी अकेले लाड़ली बहना योजना पर 18 हजार 600 करोड़ रुपए का बड़ा खर्च किया जा रहा है। दिलचस्प ये जानना है कि डायरेक्ट कैश ट्रांसफर में अब महिलाएं प्रदेश के किसानों से भी आगे निकल चुकी हैं।
एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक 2023 के विधान सभा चुनावों में लाड़ली बहना योजना ही बीजेपी के लिए बड़ी गेमचेंजर योजना साबित हुई। वहीं राजनीतिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि चुनावों में जीत की रणनीति 90 के दशक से लेकर 2010 तक अलग थी और लाड़ली बहना योजना के आते ही चुनावों में जीत की धुरी कहे जाने वाले जहां जातिगत समीकरण, क्षेत्रीय पहचान, परंपरागत वोट बैंक अब काफी पीछे छूट चुके हैं। 81 फीसदी लाभार्थी महिलाओं में से करीब आधी महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया, महिला वोटिंग बढ़ी और जीत का अंतर रिकॉर्ड भी।
अब सरकार का फोकस केंद्र की लखपति दीदी योजना पर भी बढ़ा है। इसमें मुफ्त नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर महिला का एजेंडा है। 10 लाख से ज्यादा महिलाएं पहले ही इससे जुड़ चुकी हैं। अब सरकार बड़ी तैयारी कर रही है।
यदि हम चुनावी जीत की धुरी के फैक्टर्स पर बात करें तो पहले महिलाएं केवल वोटर्स या लाभार्थी के रूप में परिवार के नाम पर पार्टियों से जुड़ती थीं, लेकिन आज वे बड़ी निर्णायक की भूमिका में आ चुकी हैं… ऐसे समझें अंतर…
-महिला वोटर्स तो थीं लेकिन स्वतंत्र निर्णायक शक्ति नहीं मानी जाती थीं। उनका वोट अक्सर परिवार या समुदाय के साथ जुड़ा होता था।
-किसान, एमएसपी, सिंचाई, सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं को के वादे चुनावी रणनीति में शामिल होते थे। तब भी घर की रसोई तक इनका सीधा असर नहीं था।
-पहले जहां नारों से चुनाव जीते जाते थे। गरीबी हटाओ, राम मंदिर बनाएंगे, जय-जवान जय-किसान जैसे बड़े मुद्दे थे। इसका भी व्यक्तिगत जेब से कोई लेना-देना नहीं होता था।
-पहले योजनाएं होती थीं, इंदिरा आवास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, आंगनबाड़ी जिनका लाभ महिलाओं को परिवार के नाम पर मिलता था। लेकिन आज डायरेक्ट कैश ट्रांसफर होता है और यहीं से राजनीति बदलती नजर आती है।
-पहले चुनाव से पहले वादे यानी घोषणा पत्र होते थे, आज चुनाव से पहले किस्त आती है। यानी वादा नहीं अब अनुभव चुनावी धुरी हैं।
-पहले वोट दिया जाता था कि हम तो हमेशा इन्हें ही देते आए हैं। आज वोट देने से पहले वोटर सोचता है किस सरकार से मुझे क्या मिला?
कुल मिलाकर पहले चुनाव जाति, परम्परा, परिवारवाद, पहचान के नाम पर दिए जाते थे आज सीधे खाते, सीधे असर और अनुभव के आधार पर लड़े जा रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि 2027 से पहले सरकार अपने घोषणा पत्र का वादा पूरा कर सकती है। हालांकि लाड़ली बहना योजना की राशि बढ़ाते हुए 3000 रुपए करने की तैयारी को लेकर सीएम डॉ. मोहन यादव अक्सर घोषणा करते रहे हैं कि 2028 सिंहस्थ के साल तक लाड़ली बहनों को 3000 रुपए दिए जाएंगे। लेकिन अब तस्वीर बदलती नजर आ रही है। सरकार 2028 से पहले ही लाड़ली बहनों को 3000 रुपए देने की घोषणा कर सकती है। हालांकि सरकार की ओर से इसकी कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।