
IAS Santosh Verma Controversy (photo: File photo Patrika)
IAS Santosh Verma Controversy: बहुचर्चित IAS संतोष वर्मा प्रकरण ने प्रशासनिक व्यवस्था की उस परत को उजागर कर दिया है, जहां एक नहीं बल्कि पूरा तंत्र सवालों के घेरे में है। विवाद की जड़ केवल पूर्व आइएएस वर्मा नहीं, बल्कि वे 21 कद्दावर आइएएस अधिकारी और जनप्रतिनिधि भी हैं, जिनकी सहमति और मौन समर्थन से वर्मा को भारतीय प्रशासनिक सेवा का अवॉर्ड मिला और बाद में निलंबन के बावजूद बहाली तक का रास्ता साफ हुआ। हैरानी की बात यह है कि फर्जी दोषमुक्ति आदेश सामने आने, जांच में गड़बड़ी उजागर होने और शिकायतों के बावजूद इन अधिकारियों और नेताओं पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
1. वर्मा का नाम 2019 में आइएएस में पदोन्नति के लिए शामिल था, तब उनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज था। इसके बाद भी उनका नाम अनंतिम रूप से शामिल किया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि अपराध दर्ज था तो नाम अलग करना था। तब राज्य के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस थे। वे विभागीय पदोन्नति समिति के भी अध्यक्ष थे।
2. वर्मा ने 8 अक्टूबर 2020 को न्यायालय का एक आदेश विभाग में पेश किया। जिसमें उन्हें दोषमुक्त किए जाने का उल्लेख था। इस आदेश पर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक इंदौर से अपील में जाने के संबंध में राय मांगी। जवाब में कथित रूप से तत्कालीन लोक अभियोजक की राय का हवाला देकर अपील में जाने से मना किया।
-12 दिसंबर को केंद्रीय कार्मिक विभाग को राज्य द्वारा भेजे गए पत्र में लिखा है कि तत्कालीन समय में दोषमुक्ति के सत्यापन के लिए इंदौर जोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखा था। इसका जवाब कार्यालय पुलिस महानिदेशक इंदौर जोन से मिला। अब विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि जब निचले स्तर के अधिकारी को पत्र लिखा था तो जवाब वरिष्ठ स्तर के अधिकारी द्वारा क्यों दिया गया? इसकी भी जांच होनी चाहिए।
-विशेषज्ञों का कहना था कि जब मामला संदिग्ध था और शिकायतकर्ता ने दोष मुक्ति वाले पत्र को झूठा करार दिया था तो सामान्य प्रशासन विभाग भोपाल की कार्मिक शाखा के तत्कालीन अधिकारियों ने पुलिस के कहने पर जिला लोक अभियोजक से राय क्यों मांगी, उक्त पत्र की पुष्टि कोर्ट के रजिस्ट्रार से कराई जानी थी। इसके पीछे मंशा देखनी चाहिए।
तत्कालीन पुलिस महानिदेशक इंदौर जोन और तत्कालीन जिला लोक अभियोजक के पत्र को सही मानते सामान्य प्रशासन विभाग के कार्मिक शाखा के अधिकारियों और राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव ने 16 अक्टूबर 2020 को वर्मा की संनिष्ठा प्रमाणित कर केंद्रीय कार्मिक विभाग को पत्र भेजा और 6 नवंबर 2020 को उन्हें आइएएस अवार्ड हो गया। इसके बाद 28 अप्रेल 2021 को हर्षिता अग्रवाल ने तत्कालीन मुख्य सचिव को शिकायत की।
फिर जांच हुईं तो इंदौर पुलिस की राय पर कोर्ट का आदेश फर्जी मिला। वर्मा को निलंबित किया गया, जांच अधिरोपित की लेकिन जांच की कछुआ चाल कभी नहीं बढ़ाई। तब तक वर्मा ने कैट में निलंबन आदेश को चुनौती दी और बहाल हो गए।
बता दें कि IAS Santosh Verma पर कार्रवाई की मांग को लेकर रविवार को राजधानी में ब्राह्मण समाज ने जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी सुबह रोशनपुरा चौराहे पर एकत्र हुए और नारेबाजी करते हुए मुख्यमंत्री निवास की ओर बढऩे लगे। ग्वालियर के एडवोकेट अनिल मिश्रा के नेतृत्व में प्रदर्शनकारी वर्मा की गिरफ्तारी और बर्खास्तगी की मांग कर रहे थे। सीएम आवास की ओर बैरिकेडिंग तोड़कर बढ़ती भीड़ की पुलिस से झड़प के दौरान कुछ बुजुर्ग और महिलाएं घायल हो गईं। ब्राह्मण रेजीमेंट के रामनारायण अवस्थी ने बताया कि कार्रवाई नहीं होने तक उनका प्रदर्शन जारी रहेगा।
Updated on:
15 Dec 2025 10:24 am
Published on:
15 Dec 2025 10:22 am
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