भोपाल

Blog: वो दिन भुलाए नहीं भूलता, हर दिवाली याद आ जाता है ‘जुआ जमात’ का वो किस्सा

Patrika Shubhotsav: पत्रिका शुभोत्सव सीरीज में आज हमें ब्लॉग भेजा है विनय वर्मा ने... दिवाली की परम्पराओं के बीच जुआ खेलने का ट्रेडिशन भी आम था, इस परम्परा से जुड़ा ये रोचक किस्सा आपको पसंद आएगा... यकीन मानिए इसे पढ़कर आपको भी जरूर याद आ जाएगी अपने जमाने की बात...

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Oct 22, 2024

Patrika Shubhotsav 2024: छोटा शहर है हमारा, पास-पड़ोस में रहने वालों में खासा प्रेम और अपनापन यहां की मिट्टी में ही है, त्योहार कोई भी हो भव्यतापूर्वक मनाने की तैयारियां यहां 7-8 दिन पहले ही होने लगती हैं। उस पर दीपावाली तो त्योहारों का राजा है। धनलक्ष्मी की पूजा के इस पर्व का वर्ष भर इंतजार किया जाता है। बाजार पटाखों, झालरों, दीपक और भगवान गणेश जी एवं देवी लक्ष्मी जी की मिट्टी की मूर्तियों से सुशोभित दिखाई देने लगते हैं, यही हमारे छोटे से शहर की दीपावली के प्रति अभिव्यक्ति है।

आज दीपावली की चर्चा के बीच मुझे भी एक याद आ रही है…दीपावली पर घर-घर खेले जाने वाले ताश पत्तों की, इन पत्तों का इक्का हो, जोकर या बादशाह अगर रुपए-पैसों से खेलो तो यह जुआ कहलाता है। हमारे यहां दीपावली पर भगवान गणेश लक्ष्मी पूजन, पटाखे, झालर, दीप प्रज्ज्वलन और नए कपड़े पहनने की खुशी के साथ ही जुआ खेलने की भी परम्परा भी रही है। चूंकि हमारे देश में जुआ खेलने पर चिरकाल से ही प्रतिबंध है, इसलिए दीपावली पर्व के आने की सुगबुगाहट के साथ ही घर की छतों और निर्जन स्थानों पर छुप-छुप के जुआ खेला जाता था। लोग सैंकड़ों रुपयों के दांव तो लगाते थे, लेकिन इधर दांव लगते उधर मन में पुलिस के आने का डर भी हावी रहता।

बात है 90 के दशक की

बात 90 के दशक की… ऐसी ही एक दीपावली की पूर्वसंध्या थी, तब मैं 15/16 साल का था और अपने ताऊ जी के घर आया हुआ था। ताऊ जी का घर मेरे घर के पास ही था। घर की छत पर मैं छोटे-मोटे पटाखे चलाने में व्यस्त था। तभी ताऊ जी और मुहल्ले के उनके कुछ मित्र आ गए और एक कोने में घेरा बनाकर जुआ खेलने के लिए जमात बैठ गई। कुछ ही देर में 10 और 20 रुपए के दांव लगना शुरू हो गए। लेकिन बिना किसी शोरगुल के, धीमी फुसफुसाहट भरी आवाज़ों के साथ, ताकि पुलिस तो छोड़ो पड़ोसियों को भी जुआ खेलने की खबर कानोकान खबर तक ना लगे।

पुलिस आ गई…

तभी अचानक नीचे से कोई भागता हुआ छत पर आया और बदहवास होकर बोला 'भागो! पुलिस आ गई है।' पुलिस का नाम सुनते ही जुआ की जमात में शामिल सब लोग सिर पर पैर रखकर भागने लगे, जिसको जहां जगह नजर आई, कोई पड़ोसी की छत पर, कोई पीछे नाले की तरफ ऊंचाई से ही कूद पड़ा, कुछ लोग चोटिल हो गए और एक सज्जन का तो पैर ही टूट गया… और जब सभी भाग गए, उसके बाद पता लगा कि जुआ पकड़ने कोई पुलिस नहीं आई, बल्कि एक पुलिस वाले अंकल घर के मोहल्ले में बने मार्केट से दीपावली की खरीदारी करने आए थे।

आज भी इस घटना को याद कर बरबस ही हंसी आ जाती है और मैं लोट-पोट हो जाता हूं।

आप सब भी दीपावली का त्योहार हर्षोल्लास से मनाइए ऐसी शुभकामनाएं...

-विनय वर्मा (लेखक)

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Updated on:
22 Oct 2024 04:44 pm
Published on:
22 Oct 2024 04:31 pm
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