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अरे भाई दिवाली है…खुशियां भी, महंगाई की मार भी…

Patrika Shubotsav: पढ़ने और सुनने में रोचक लगने वाले इन किस्सों की सौगात आपके त्योहार का मजा दोगुना कर देगी। पत्रिका की इस खूबसूरत पहल में हमें पहला ब्लॉग मिला है संजय मधुप का… महंगाई की मार झेल रहे पर्व और एक आम परिवार… की कहानी सुनाता व्यंग्यात्मक लेख आपको जरूर पसंद आएगा…

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Patrika Shubhotsav

Patrika Shubhotsav: पंच पर्व दिवाली आने को है, इससे पहले पत्रिका ने अपने रीडर्स के लिए 'पत्रिका शुभोत्सव' सीरीज शुरू की है। इस सीरीज में रीडर्स और लिखने के शौकीन दिवाली से जुड़े अपने जीवन के यादगार किस्से और अनुभव, ओपिनियन, ब्लॉग, संदेश शेयर कर रहे हैं। पढ़ने और सुनने में रोचक लगने वाले इन किस्सों की सौगात आपके त्योहार का मजा दोगुना कर देगी। पत्रिका की इस खूबसूरत पहल में हमें पहला ब्लॉग मिला है संजय मधुप का… महंगाई की मार झेल रहे पर्व और एक आम परिवार… की कहानी सुनाता व्यंग्यात्मक लेख आपको जरूर पसंद आएगा…

व्‍हाट्सएप पर एक ही मैसेज, दो दिन तक चलता है और बात सिर्फ काम के लोगों से

दशहरे के बाद ही लगभग हर घर में लिपाई-पुताई का दौर शुरू हो जाता है, जो दिवाली के बाद तक जारी रहता है। या यूं कहें कि दिवाली का पर्व आता है तो साल में एक बार घर की सफाई का बहाना भी अपने साथ ले आता है। ये वह खास दिन भी हैं जब लोग बीमारियों का सबसे ज्यादा शिकार भी होते हैं। तो जो स्वस्थ रहते हैं वो दिवाली के पटाखों के प्रदूषण से बीमारी की मार झेल रहे होते हैं।

हर साल की तरह इस बार भी सरकार और प्रशासन की ओर से आदेश जारी किए जाएंगे… इतनी आवाज से अधिक के शोर वाले पटाखे नहीं फोड़े जाएंगे लेकिन साहब, हर तरह की आवाज के पटाखे फोडे़ जाते हैं। और अब तो बच्‍चे, बुजुर्ग और पशु-पक्षी भी इन बम और पटाखों की धमाकेदार आवाजों के आदी हो गए हैं। 12 बजे तक जैसे-तैसे उन्हें नींद लग ही जाती है।

व्‍यापारियों को तो लगता है कि दिवाली के बाद तो कमाने का मौका मिलेगा ही नहीं, तो बडे़-बडे़ बैनर पोस्‍टर में सेल सेल सेल… की रेलमपेल मची रहती है। जहां चाहो, ढेले पर दुकान लगा लो, जितनी चाहो उतनी दुकान आगे लगा लो, मजाल है कि कोई आपको नियम कायदे सिखाए। अरे भाई दिवाली तो सभी की होती है। विभाग वाले भी दो चार क्विंटल मावा पकड़ लेंगे। लेकिन फिर साल भर के लिए फुरसत। लोग भी चालाक हो गए हैं, मिठाई सिर्फ मेहमानों को खिलाने के लिए ही लाते हैं, खुद कभी नहीं खाते, क्‍योंकि घर की लक्ष्‍मी ने घर पर मिठाई बनाने का फैशन ही खत्‍म कर दिया है।

हम अगर अपने बचपन को याद करें तो समझ में आता है कि दिवाली बच्‍चों का त्‍योहार है। उनके लिए कपड़े, नए जूते, पटाखे लेना तो जरूरी हो जाता है। वैसे भी इस महंगाई के जमाने में एक पिता साल में एक बार ही नए कपड़े खरीद पाता है बच्‍चों के लिए। पत्‍नी अगर समझदार मिल गई है तो ठीक है, नहीं तो दिवाली आपका दिवाला ऐसा निकालती है कि धनलक्ष्मी की कृपा तो दूर की कौड़ी हो जाता है, लेकिन आपका कर्जदार होना तय है।

वैसे भी अब मेहमान कहां ही आते हैं, व्‍हाट्सएप पर एक ही मैसेज दो दिन तक चकरघिन्‍नी होता रहता है। अब सिर्फ काम के लोगों से ही बात की जाती है। बाकियों को मैसेज से चलता कर दिया जाता है। टेक्नोलॉजी के इस युग में बने इस नियम को लगभग हर घर-परिवार में पालन करना सुनिश्चित किया जाता है। कुछ समझदार लोग छुट्टी में घूमने निकल जाते हैं। सुकून की तलाश में। अगर हमारा मन खुश है तो, हमारा जीवन खुश है। इनका कहना भी ठीक है।

जिन घरों में हमारे बुजुर्ग माता-पिता रहते हैं, उन घरों में आज भी संस्‍कार जीवित हैं, वरना हम रोज अखबारों में पढ़ ही रहे हैं। हम विदेशियों को फॉलो कर रहे हैं और विदशी हमें। समाज किस दिशा में जा रहा है समझ नहीं आता है। दिवाली के दो दिन बाद ही हम वापस अपनी दुनिया में लौट आते हैं। दिवाली आती तो बड़ी देर से है लेकिन जाती बहुत जल्‍दी है। खैर साहब, कहा सुना माफ करना। आपकी दिवाली शुभ हो, आप स्‍वस्‍थ रहें, यही प्रार्थना है माता लक्ष्‍मी से।

- संजय मधुप (लेखक और व्यंगकार इंटरनेशनल ट्रैकर हैं)

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