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भरोसे के बाजार…यहां सिर्फ कारोबार नहीं होता, बल्कि जुड़ जाते हैं दिल

पत्रिका शुभोत्सव में आज से पढ़ें प्रदेशभर के समृद्ध बाजारों की कहानी, भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर समेत प्रदेश के वे बाजार, ग्राहक और कारोबारी तो हैं, लेकिन सबसे खास है इनके बीच भरोसे की डोर...

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Patrika Shubhotsav

पत्रिका के साथ आज हम आपको भरोसे के बाजारों की सैर पर ले चलते हैं। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर समेत प्रदेश के ये वे बाजार हैं, जिनकी नींव बेहद मजबूत है। इन बाजारों में ग्राहक और कारोबारी तो हैं, लेकिन खास यह है कि उनके रिश्ते भरोसे की डोर से बंधे हैं। इसमें सामान की गुणवत्ता, रिश्तों की मिठास और अपनापन कूट-कूटकर भरा है। ये बाजार न सिर्फ प्रदेश की अर्थव्यवस्था को सशक्त बना रहे हैं, बल्कि लोगों के सुख-दुख के साथी भी हैं।

बाजारों के समृद्ध सफर को याद करते हुए प्रदेश के व्यापार और बाजारों की नब्ज जानने वाले कारोबारी नंदकिशोर अग्रवाल का कहना है, मालवा-निमाड़ ही नहीं, प्रदेशभर से कच्चा माल लेकर उत्पादक इंदौर आते थे। माल का तुरंत भुगतान पाकर यहां से अनाज, कपड़ा, बर्तन, सर्राफा समेत जरूरत के सामान की दिल खोलकर खरीदी करते थे। यही वजह है कि बाजार तेजी से उभरे और विश्वास की छाप छोड़ गए।

भरोसे का यही रिश्ता ग्वालियर-चंबल, विंध्य-महाकौशल, बुंदेलखंड, भोपाल रीजन के बाजारों ने ग्राहकों के साथ कायम किया। संयुक्त मध्यप्रदेश में पोहा और चावल के लिए बालाघाट और छत्तीसगढ़ के उत्पादक क्षेत्रों में इंदौर का जुड़ाव बढ़ा। नरसिंहपुर-करेली के गुड़ की मिठास के साथ व्यापार बढ़ा। किराना और ड्रायफ्रूट्स के वितरण केंद्र के रूप में भी बाजारों से लेन-देन बढ़ा।

300 साल पुराना भोपाल का सर्राफा, ग्राहक-व्यापारियों के रिश्ते भी पुश्तैनी

भोपाल. राजधानी के दिल ‘चौक’ के बीच स्थित सर्राफा बाजार अरसे बाद भी भरोसे की कहानियां कह रहा है। नवाबी दौर में जामा मस्जिद के चारों ओर चौक सर्राफा बाजार करीब 300 साल पुराना है। ग्राहकों-व्यापारियों के रिश्ते पुश्तैनी हैं। भोपाली झुमके, चांदी की चुनौटी, बंजारा, आदिवासी समुदाय के परंपरागत गहने सिर्फ यहीं मिलते हैं।

परंपरागत गहनों के लिए व्यापारियों को विदेश से भी ऑर्डर मिलते हैं। सर्राफा व्यापारी सुभाष अग्रवाल बताते हैं, जुमेराती, इतवारी, मंगलवारी, सोमवारा में चलने वाला सर्राफा बाजार ग्राहकों का पूरा ख्याल रखता है। यह बाजार आज भी मुहूर्त के हिसाब से चलता है। धनतेरस और दिवाली में रातभर बाजार खुलता है।

सेवागंज से सियागंज का सफर

इंदौर. अहिल्या चेंबर ऑफ कॉमर्स के संस्थापक सुशील सुरेका की मानें तो सियागंज की नींव 19वीं सदी के अंत में रखी थी। होलकरों ने सेवागंज नाम से बाजार शुरू किया। जमीन दी, कहा-जितनी जगह शेड लगाकर दुकान खोलेंगे, उतनी जगह उनकी होगी। शिवाजीराव होलकर के शासन में इसका नाम शिवागंज पड़ा, फिर सियागंज हुआ। सही दाम, क्वॉलिटी के साथ सियागंज बाजार बना तो प्रदेशभर से व्यापारी आने लगे।

महाकौशल के बाजार सुख-दुख के साथी

महाकौशल के बाजारों की विकास यात्रा का जिक्र करते हुए कारोबारी जितेंद्र जैन कहते हैं, प्रतिस्पर्धा के दौर में भी हर तरह के परंपरागत बाजारों ने गुणवत्ता के साथ ग्राहकों के भरोसे को डिगने नहीं दिया। यही वजह है कि जबलपुर में क्षेत्रीय बाजारों का नए सिरे से विकास हुआ।

कटनी-सतना, सिवनी-छिंदवाड़ा में भी बाजार तेजी से विकसित हुए। ये कई सेक्टर में इंदौर को न सिर्फ टक्कर देते हैं, बल्कि पीछे छोड़ने की स्थिति में हैं। एक दूसरे के दुख-सुख में ग्राहक-व्यापारी साथ खड़े होते हैं। रेडीमेड गारमेंट से शुरू करके उनकी तीसरी पीढ़ी ज्वेलरी व अन्य सेग्मेंट का कारोबार कामयाबी से कर रही है। जितेंद्र के पिता को 92 वर्ष की उम्र में अपने व्यापार और ग्राहकों से इतना लगाव है कि शॉप पर सबसे पहले सुबह 10.30 बजे ही आ जाते हैं।

खास है ग्वालियर की धनतेरस, 60 साल से दूसरे दिन सुबह 4 बजे तक खुलते बाजार

ग्वालियर.शहर की धनतेरस प्रदेश भर में खास है। वह इसलिए कि यहां के सर्राफा बाजार में इस पूरे दिन के साथ रातभर कारोबार होने के बाद अगले दिन सुबह 4 बजे तक काम होता है। सर्राफा कारोबारी शोरूम- दुकानें खोले रहते हैं, वहीं खरीदारों का भी तांता लगता है। पिछले 60 साल की यह परंपरा कायम है। इससे पहले बाजार रात दो बजे तक खुलते थे। सर्राफा बाजार में बर्तन की दुकानें भी हैं, चूंकि धनतेरस पर सोना-चांदी और बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। ऐसे में सर्राफा की जगमगाहट देखते ही बनती है।

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