Consumer Forum Action : भोपाल में रेलवे की एक ऐसी लापरवाही सामने आई, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे और अब इसी लापरवाही का खामियाजा रेलवे को भुगतना पड़ेगा।
Consumer Forum Action : आम धारणा के अनुसार, ट्रेन की यात्रा अन्य की माध्यमों के मुकाबले ज्यादा सुविधाजनक मानी जाती है। रेलवे अपने यात्रियों की सुगम यात्रा का लिए हर संभव प्रयास और व्यवस्था भी करता है। लेकिन, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रेलवे की एक ऐसी लापरवाही सामने आई है, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे और अब इसी लापरवाही का खामियाजा रेलवे को भुगतना भी पड़ेगा।
दरअसल, ट्रेन में यात्रा के दौरान हुई असुविधा के लिए यात्री की शिकायत की अनदेखी करना अब रेलवे को ही भारी पड़ गया है। भोपाल के जिला उपभोक्ता आयोग ने रेलवे को आदेश दिया है कि, यात्री की सेवा में आई कमी के लिए उपभोक्ता को हर्जाने के रूप में 40 हजार रुपए अदा करे।
उपभोक्ता ने आयोग में परिवाद कर शिकायत की थी कि यात्रा के दौरान ट्रेन के दरवाजों में तकनीकी खराबी आ गई थी, जिसक चलते उसकी पत्नी करीब आधे घंटे ट्रेन के टॉयलेट में बंद रही थी। भोपाल के रविदास नगर में रहने वाले उमेश पांडेय ने जिला उपभोक्ता आयोग में भारतीय रेल प्रबंधक के खिलाफ परिवाद दायर किया था। दायर परिवाद के तहत उपभोक्ता ने कहा कि, 20 अप्रैल 2022 को वो त्रिकुल एक्सप्रेस से थर्ड एसी में परिवार के साथ कन्याकुमारी से भोपाल आ रहे थे। इस दौरान उनकी बर्थ फटी हुई थी, टॉयलेट की सीट टूटी हुई थी। उनकी पत्नी टॉयलेट गई तो गेट अंदर से लॉक हो गया।
उमेश के अनुसार, उसकी पत्नी के पास मोबाइल भी नहीं था। ऐसे में करीब आधे घंटे वो ट्रेन के टॉयलेट में ही बंद रही। सहयात्रियों जैसे तैसे उसे बाहर निकाला। उन्होंने रेलवे में ऑनलाइन शिकायत की, लेकिन रेलेवे ने उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया। रेलवे की इस लापरवाही के चलते उन्होंने भोपाल स्थित उपभोक्ता आयोग में शिकायत कर दी।
सुनवाई के दौरान पहले तो रेलवे ने शिकायतकर्ता को यात्री मानने से ही इंकार कर दिया। फिर तर्क दिया कि, टिकट में यात्रा का अधिकार मिलता है, सुविधाओं का नहीं। टॉयलेट की सुविधा निशुल्क होती है, जिसके चलते ये मामले निरस्त किया जाए। रेलवे ने ये भी कहा कि, शिकायत के बाद मदुरई स्टेशन पर मैकेनिक ने टॉयलेट सीट को सुधारने का प्रयास किया, लेकिन उसे निर्धारित समय पर ठीक नहीं किया जा सका और ट्रेन को अधिक देर तक नहीं रोका जा सकता था। इस तर्क को आयोग ने खारिज कर दिया और रेलवे पर सेवा में कमी का हर्जाना लगाया।